डाला बल्कि पूर्व मंत्रियों और बड़े नेताओं तक को निशाना बनाया। राजधानी काठमांडू का ऐतिहासिक सिंह दरबार, संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री आवास, राजनीतिक दलों के दफ़्तर—सब आग की लपटों में घिर गए। इस भीषण आंदोलन में अब तक कम से कम 22 लोगों की जान जा चुकी है।
सरकार गिरने के बाद भी हालात थमे नहीं। संसद और राष्ट्रपति कार्यालय को जलाने के अगले ही दिन राजधानी के एक बड़े मॉल में जमकर लूटपाट हुई। हालात बेकाबू होते देख त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट और मशहूर पशुपतिनाथ मंदिर को बंद करना पड़ा। इससे पहले प्रदर्शनकारियों ने इन जगहों पर भी तोड़फोड़ की थी।
प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के इस्तीफ़े के बाद नेपाल की कमान अब सेना के हाथों में है। फिलहाल देश में कोई निर्वाचित सरकार नहीं है। सेना ने युवाओं से आंदोलन समाप्त करने और बातचीत की मेज़ पर आने की अपील की है। सवाल यह है कि बिना राजनीतिक नेतृत्व के नेपाल आगे कैसे बढ़ेगा? युवाओं की यह आग कब थमेगी और आगे किस-किस रूप में हिंसा फैलाएगी, यह अभी अनिश्चित है।
दिलचस्प बात यह है कि नेपाल का सबसे करीबी राजनीतिक साझेदार चीन अब तक चुप्पी साधे हुए है। वहीं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शांति बनाए रखने का संदेश दिया और युवाओं से हिंसा छोड़ने का आग्रह किया।
सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिगडेल ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा— “हम प्रदर्शनकारियों से अपील करते हैं कि विरोध बंद करें और शांतिपूर्ण समाधान के लिए संवाद को आगे बढ़ाएं। हमें इस कठिन समय को मिलकर सामान्य करना है और नागरिकों व राजनयिक संस्थानों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी है।”