भारत में ₹5 और ₹10 सिर्फ़ एक कीमत नहीं, बल्कि भरोसे का प्रतीक बन गए हैं। ये ऐसी कीमतें हैं जिन्हें देश का हर उपभोक्ता आसानी से समझ और स्वीकार कर लेता है। किसी बड़े हिसाब-किताब की ज़रूरत नहीं। अपनी जेब से सिक्के निकालिए और सामान खरीद लीजिए। खासकर ग्रामीण और छोटे शहरों में जहाँ लोग रोज़ या हर हफ़्ते नकद खरीदारी करते हैं, ये कीमतें सुविधा और भरोसे का पर्याय बन गई हैं।
ये कीमतें क्यों नहीं बदलतीं?
हाल ही में सरकार ने कई चीज़ों पर जीएसटी में बदलाव किए हैं, जिससे कंपनियों को फ़ायदा हुआ है। लेकिन फिर भी, वे ₹5 और ₹10 की सीमा तोड़ने को तैयार नहीं हैं। दाम कम करने की बजाय, वे पैकेट का वज़न बढ़ा देते हैं। यानी जो बिस्किट का पैकेट पहले 40 ग्राम का मिलता था, अब ₹10 में 50 ग्राम का मिल सकता है।
दरअसल, कीमत बदलने का मतलब सिर्फ़ एमआरपी बदलना नहीं है। इसके साथ ही पैकेजिंग, वितरण और खुदरा प्रदर्शन, सब कुछ बदलना पड़ता है। यही वजह है कि कंपनियां इन कीमतों से छेड़छाड़ नहीं करतीं।
ब्रांड से ज़्यादा कीमत पर भरोसा
इस बाज़ार में, कीमत ही सबसे बड़ा ब्रांड है। मान लीजिए एक कंपनी बिस्कुट का एक पैकेट ₹12 में बेचना शुरू करती है और दूसरी कंपनी वही बिस्कुट ₹10 में बेचती रहती है, तो ग्राहक तुरंत दूसरी कंपनी के पास चला जाएगा। यानी यहाँ वफादारी ब्रांड के नाम की नहीं, बल्कि पैसे की है।
यही वजह है कि पारले जैसी कंपनियां दशकों से ₹5 और ₹10 के पैकेट बना रही हैं। इससे उनके उत्पाद छात्रों, मजदूरों और आम परिवारों तक आसानी से पहुँच पाते हैं। जहाँ बड़ी कंपनियां प्रीमियम उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करती हैं, वहीं पारले जैसे ब्रांड वॉल्यूम, यानी ज़्यादा बिक्री से कमाई करते हैं।
₹5 और ₹10 का महत्व
पूरी सप्लाई चेन ₹5 और ₹10 पर आधारित है। पैकेजिंग से लेकर कार्टन के आकार और किराने की दुकान की शेल्फ तक, सब कुछ इसी के अनुसार तय होता है। दुकानदार भी इन छोटे पैकेटों को पसंद करते हैं क्योंकि ये जल्दी बिक जाते हैं और ग्राहक बार-बार आते हैं।
पहले सामान एक-दो रुपये में मिल जाता था। फिर ₹5 ने अपनी जगह बनाई। अब धीरे-धीरे, खासकर नाश्ते और रोज़मर्रा की चीज़ों में, ₹10 सबसे लोकप्रिय मूल्य बिंदु बन गया है। यह दर्शाता है कि लोगों की क्रय शक्ति बढ़ी है और अब वे ₹10 को एक सामान्य खर्च मानने लगे हैं। भारत जैसे देश में, जहाँ करोड़ों लोग निम्न-आय वर्ग में आते हैं, छोटी कीमतें ही बड़े कारोबार की कुंजी हैं। ₹5 और ₹10 सिर्फ़ कीमतें नहीं हैं, बल्कि आम आदमी के लिए विश्वास और सुविधा का पैमाना हैं।