सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने अपनी सहायक कंपनी सेंट होम बैंक फाइनेंस लिमिटेड (Cent Home Bank Finance Ltd.) में बड़े निवेश की घोषणा की है। बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने कंपनी में ₹64.40 करोड़ की इक्विटी कैपिटल डालने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही, बैंक ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह प्रस्तावित राइट इश्यू (Right Issue) के तहत कुल ₹100 करोड़ तक का निवेश करेगा।
बोर्ड बैठक में लिया गया अहम फैसला
यह निर्णय सोमवार को आयोजित बोर्ड मीटिंग में लिया गया। बैठक दोपहर 3:00 बजे शुरू होकर शाम 5:15 बजे समाप्त हुई। बैठक में कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण यह निवेश प्रस्ताव रहा। बैंक ने स्पष्ट किया कि यह निवेश जरूरी रेगुलेटरी अप्रूवल्स और अन्य औपचारिकताओं के अधीन होगा।
रेगुलेटरी घोषणा
बैंक ने इस कदम की जानकारी सेबी (लिस्टिंग ऑब्लिगेशंस एंड डिस्क्लोज़र रिक्वायरमेंट्स) रेगुलेशंस, 2015 के रेगुलेशन 30 के तहत दी है। कंपनी का स्क्रिप्ट कोड 532885 है, और यह जानकारी पब्लिक डोमेन में भी उपलब्ध कराई गई है ताकि सभी निवेशक और स्टेकहोल्डर्स अवगत रह सकें।
क्यों अहम है यह निवेश?
सेंट होम बैंक फाइनेंस लिमिटेड, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की एक प्रमुख सहायक कंपनी है, जो हाउसिंग फाइनेंस सेगमेंट में काम करती है। भारत में हाउसिंग सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है और सरकार भी ‘सभी के लिए घर’ (Housing for All) जैसी योजनाओं को आगे बढ़ा रही है। ऐसे में इस कंपनी में पूंजी निवेश से न केवल उसकी कैपिटल स्ट्रेंथ बढ़ेगी बल्कि उसे भविष्य में लोन डिस्बर्सल और विस्तार योजनाओं के लिए पर्याप्त संसाधन भी मिल सकेंगे।
मार्केट और निवेशकों पर असर
बाजार विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम बैंक की लंबी अवधि की रणनीति को मजबूत करेगा। इससे न केवल हाउसिंग फाइनेंस सेगमेंट में बैंक की पकड़ मजबूत होगी बल्कि शेयरधारकों को भी भरोसा मिलेगा कि कंपनी अपनी सब्सिडियरी के विस्तार के लिए गंभीर है।
हालांकि, निवेश पर अंतिम असर नियामकीय मंजूरियों के बाद ही दिखेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि बैंकिंग और हाउसिंग फाइनेंस सेक्टर में कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद, सरकारी बैंकों की इस तरह की पहल मार्केट में सकारात्मक सिग्नल देती है।
निष्कर्ष
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया का यह निर्णय उसकी विकास योजनाओं और सब्सिडियरी कंपनियों को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। निवेशकों की नज़र अब इस बात पर होगी कि नियामकीय मंजूरियां मिलने के बाद यह पूंजी कंपनी के बिज़नेस मॉडल और ग्रोथ प्लान पर कैसे असर डालती है।