अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक तनाव एक बार फिर सुर्खियों में है। H-1B वीजा पर भारी-भरकम शुल्क लगाने के हालिया फैसले के बाद अब अमेरिकी सांसदों ने भारतीय झींगा (Shrimp) निर्यात पर टैरिफ लगाने का प्रस्ताव पेश किया है।
रिपब्लिकन सीनेटर बिल कैसिडी और सिंडी हाइड-स्मिथ ने अमेरिकी कांग्रेस में “इंडिया श्रिम्प टैरिफ एक्ट (India Shrimp Tariff Act)” पेश करते हुए आरोप लगाया कि भारत अनुचित व्यापार प्रथाओं का सहारा लेकर अमेरिकी बाजार में सस्ते दामों पर झींगा भेज रहा है। उनका कहना है कि इस वजह से लुइसियाना की झींगा और कैटफिश इंडस्ट्री को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
कैसिडी ने तर्क दिया कि, “भारतीय कंपनियां डंपिंग के ज़रिए हमारे स्थानीय उद्योग को हानि पहुँचा रही हैं। यह बिल सीफूड सेक्टर और उससे जुड़े हजारों अमेरिकी रोजगारों की सुरक्षा करेगा।” वहीं, हाइड-स्मिथ ने कहा कि बेकाबू आयात ने अमेरिकी उत्पादकों और प्रोसेसर्स को नुकसान पहुंचाया है, इसलिए यह कानून घरेलू उद्योग को प्रतिस्पर्धा में एक समान अवसर देगा।
गौरतलब है कि कैसिडी इससे पहले भी सीनेट की वित्त समिति की सुनवाई में यह मुद्दा उठा चुके हैं और ट्रेजरी के नामित पदाधिकारी जोनाथन ग्रीनस्टीन से स्थानीय उत्पादकों को समर्थन देने का आश्वासन प्राप्त किया था। यह पहली बार नहीं है जब अमेरिकी सांसदों ने भारतीय कृषि और खाद्य निर्यात को निशाना बनाया हो—इससे पहले इस साल भारत और चीन से चावल आयात पर रोक लगाने का प्रस्ताव भी लाया गया था।
H-1B वीजा पर भी बढ़ी मुश्किलें
इस बीच, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने “कुछ गैर-आप्रवासी कामगारों के प्रवेश पर प्रतिबंध” नामक नया आदेश लागू कर दिया है। 21 सितंबर से लागू इस नियम के तहत नए H-1B वीजा आवेदनों पर अब कंपनियों को 1,00,000 डॉलर (₹88 लाख से अधिक) की अतिरिक्त फीस चुकानी होगी।
अमेरिकी प्रशासन का दावा है कि यह कदम वीजा सिस्टम के “दुरुपयोग” को रोकने के लिए उठाया गया है। लेकिन जानकारों के मुताबिक, इस फैसले का सीधा असर भारतीय आईटी कंपनियों—जैसे टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो—पर पड़ेगा। चूंकि कुल H-1B वीजा में से करीब 72% भारतीय पेशेवरों को मिलते हैं, इसलिए वित्तीय और संचालन संबंधी बोझ सबसे ज्यादा भारत पर ही पड़ेगा।
भारत के लिए दोहरी चुनौती
विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति भारत के लिए दोहरी चोट जैसी है। एक ओर, झींगा निर्यात पर टैरिफ से विदेशी व्यापार प्रभावित होगा, वहीं H-1B वीजा के कड़े नियम भारत के 125 अरब डॉलर के रेमिटेंस फ्लो पर दबाव डाल सकते हैं। इससे भारतीय कंपनियों और पेशेवरों दोनों को झटका लगने की संभावना है।