Adverse Possession : आज के समय में लोग बड़े-बड़े शहरों में इनकम को बढ़ाने के लिए संपत्ति को रेंट पर दे देते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि संपत्ति को रेंट पर देने से पहले मकान मालिक के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। मकान मालिक को प्रोपर्टी को रेंट पर देने से पहले एडवर्स पजेशन का कानूनी सिद्धांत जान लेना चाहिए। आइए खबर में जानते हैं कि एडवर्स पजेशन (adverse possession law) का कानूनी सिद्धांत क्या कहता है।
आए दिन प्रोपर्टी पर कब्जे को लेकर कई खबरें सामने आती है, लेकिन प्रोपर्टी को किराए पर देने में कोई दिक्कत भी नहीं है, लेकिन परेशानी तब हैं, जब प्रोपर्टी के मालिक को संपत्ति से जुड़े नियमों (Adverse Possession Rule) का पता नहीं होता है। अगर आपने भी प्रोपर्टी पर किराए पर दी हुई है तो ऐेसे में आइए खबर में जानते हैं कि ऐसे मामले में एडवर्स पजेशन का कानूनी सिद्धांत क्या कहता है।
जानिए क्या है एडवर्स पजेशन
सबसे पहले तो आप यह जान लें कि आखिर एडवर्स पजेशन (adverse possession) क्या है तो बता दें कि एडवर्स पजेशन भारतीय कानून का एक अलग सिद्धान्त है, जिसमे वह मूल मालिक की अनुमति के बिना काफी लंबे समय से वहां रह रहा है। उस संपत्ति का कानूनी मलिक (legal owner of property) बनने की परमिशन देता है। मकानमालिकों को इस कानून की जानकारी होना बेहद जरूरी है।
कब कब्जाधारी बन सकता है संपत्ति मालिक होने का दावा
नियमों की बात करें तो निजी संपत्ति विवादों की समय सीमा, सीमा धिनियम 1963 (Limitation Act 1963) की धारा 65 के 12 साल की है, जिसका अर्थ है कि अगर जो मूल स्वामी है, वो इस अवधि के भीतर अपनी संपत्ति वापस लेने या फिर कानूनी कार्रवाई नहीं कर पाते है तो वह अपनी संपत्ति खो सकता है।
या यूं कहलें कि अगर कोई व्यक्ति किसी जमीन या फिर संपत्ति पर 12 साल तक लगातार, खुलेआम और शांतिपूर्वक तरीके से बिना कोई परेशानी के रह रहा है और इस संपत्ति पर रह रहे व्यक्ति का मूल मालिक (Rights of landlord) कोई आपत्ति ना करें या फिर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं करेगा तो ऐसे में कब्जाधारी व्यक्ति कानूनी रूप से मालिक के ऑनर होने का दावा कर सकता है।
संपत्ति के मालिक को करनी चाहिए कार्रवाई
अगर ऐसा कोई मामला होता है तो ऐसे में उस संपत्ति के मालिक (property owners rights) को इसकी जानकारी होनी चाहिए और साथ ही यह मामला निर्बाध होने के साथ ही हिंसा या फिर गोपनीयता के आधार पर नहीं होना चाहिए। ऐसे में जब संपत्ति के मालिक को कब्जे के बारे में जानकारी है, लेकिन फिर भी वह व्यक्ति के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं करना चाहता तो ऐसी दशा में कब्जा करने वाले व्यक्ति के लिए दावा करना मजबूत हो जाएगा।
ऐसे मामले में क्या कहती है अदालत
सबसे पहले तो बता दें कि संपत्ति मालिक और मकान मालिक के लिए एडवर्स पजेशन (Adverse possession for landlord) के कानून को समझना बेहद जरूरी हो गया है। नियम के मुताबिक 12 सालों तक किसी संपत्ति की एक्सपेक्टेशन करना या फिर किसी को वैध समझौते के बिना ही वहां पर रहने देना स्वामित्व अधिकारों को खो सकता है। अदालत बिना किसी आपत्ती के लगातार कब्जे को मानती है कि असली मालिक ने अपनी संपत्ति खो दी है।
कब नहीं कर सकते हैं स्वामित्व का दावा
हालांकि कुछ मामले ऐसे भी होते हैं, जिनमे किराएदार एडवांस्ड पजेशन (Advanced Possession kya hai) के माध्यम से स्वामित्व का दावा नहीं कर सकते हैं, क्योंकि वो लोगा किराए या फिर पट्टे के समझौते के तहत मकान मालिक की अनुमति के बाद ही प्रोपर्टी पर कब्जा करते हैं।
हालांकि समझौते का समय खत्म होते ही और किराएदार मकान मालिक की ओर से नवीनीकरण या फिर आपत्ति के बिना रहते हैं तो उस समय में मुश्किलें खड़ी होती हैं। अगर ऐसी दशा में बिना किराएदार बिना किसी कार्रवाई या फिर लिखित स्वीकृति के 12 सालों से ज्यादा समय तक रहता है तो ऐसे में किराएदार के कब्जे (tenant occupied) को आखिर में माना जाता है।
कब कराना चाहिए अदालत में कब्जे का मुकदमा दायर
दरअसल, आपको बता दें कि मकान मालिकों (landlords rights) को हमेशा एक उचित किराया या फिर पट्टे के समझौते के तहत ही किराएदार रखना चाहिए, और साथ ही समय पर नवीनीकरण भी करना चाहिए। इस बात को क्लियर करने के लिए संपत्ति आपके कंट्रोल में रहे नियमित दौरे और निरीक्षण की जरूरत होती है।
इस दौरान सभी स्वामित्व रिकॉर्ड (ownership record) अपने नाम पर ही रखें। इन स्वामित्व रिकॉर्ड में रजिस्ट्री पत्र, टैक्स की रसीदें और बिजली के बिल का नाम शामिल है । अगर आपको यह पता चल जाता है कि किसी ने आपकी संपत्ति पर गैर कानूनी कब्जा कर लिया है तो ऐसे में 12 साल का समय खत्म होने से पहले तुरंत अदालत में कब्जे (Possession case in court) का मुकदमा दायर कराना चाहिए।
