हिंदू धर्म में संकष्टी चतुर्थी व्रत का अत्यंत विशेष महत्व माना गया है। जब यह व्रत मार्गशीर्ष मास में आता है, तो इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस दिन भक्त भगवान गणेश के ‘गणाधिप’ स्वरूप की आराधना करते हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से जीवन के सभी संकट और बाधाएं दूर होती हैं। आइए जानते हैं, वर्ष 2025 में गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की सटीक तारीख, पूजा मुहूर्त, चंद्रोदय समय और पूजन की विधि।
🌙 गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 2025 की तिथि
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि चंद्रोदय समय के अनुसार निर्धारित की जाती है।
इस वर्ष यह पवित्र व्रत 8 नवंबर 2025 (शनिवार) को मनाया जाएगा।
- चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 8 नवंबर 2025, सुबह 07:32 बजे
- चतुर्थी तिथि समाप्ति: 9 नवंबर 2025, सुबह 04:25 बजे
- चंद्रोदय समय: 8 नवंबर 2025, शाम 07:59 बजे
इसलिए इस वर्ष 8 नवंबर को व्रत रखना सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि उसी दिन चतुर्थी तिथि में चंद्रोदय होगा।
🕉️ 8 नवंबर के शुभ मुहूर्त (Auspicious Timings)
- ब्रह्म मुहूर्त: 04:53 AM – 05:46 AM
- प्रातः संध्या: 05:20 AM – 06:38 AM
- अभिजीत मुहूर्त: 11:43 AM – 12:26 PM
- विजय मुहूर्त: 01:53 PM – 02:37 PM
- गोधूलि मुहूर्त: 05:31 PM – 05:57 PM
- सायाह्न संध्या: 05:31 PM – 06:50 PM
- अमृत काल: 02:09 PM – 03:35 PM
- निशिता मुहूर्त: 11:39 PM – 12:31 AM (9 नवंबर)
संकष्टी चतुर्थी का पारण चंद्रोदय के बाद ही किया जाता है, इसलिए उसी दिन व्रत रखना और चंद्र दर्शन के पश्चात उपवास तोड़ना शुभ माना गया है।
🌺 गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का महत्व (Significance)
यह व्रत भगवान गणेश के गणाधिप स्वरूप को समर्पित है — यानी सभी गणों के स्वामी।
“संकष्टी” का अर्थ होता है संकटों को हरने वाला, और इसी कारण यह व्रत जीवन से सभी प्रकार के कष्ट, बाधाएं और नकारात्मकता दूर करता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन श्रद्धा से गणेश जी की पूजा करने पर बुद्धि, ज्ञान, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
कहा जाता है कि हनुमान जी ने भी भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने और अद्भुत शक्ति हासिल करने के लिए इस व्रत का पालन किया था।
🙏 गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि (Puja Vidhi)
1️⃣ प्रातःकाल स्नान और व्रत संकल्प:
सूर्योदय से पूर्व उठें, स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें (लाल या पीले रंग के वस्त्र शुभ माने जाते हैं)।
गणेश जी के नाम से व्रत का संकल्प लें और दिनभर फलाहार या निर्जल उपवास रखें।
2️⃣ पूजा की तैयारी:
एक चौकी पर भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उन्हें रोली, अक्षत, दूर्वा घास, लाल पुष्प और दीप अर्पित करें।
3️⃣ भोग अर्पण:
भगवान गणेश को मोदक, तिल के लड्डू या बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं।
4️⃣ मंत्र जाप:
पूजन के दौरान ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करें।
इसके बाद संकटनाशक गणेश स्तोत्र या श्री गणेश स्तोत्र का पाठ करें।
5️⃣ चंद्र दर्शन और अर्घ्य:
शाम के समय गणेश कथा सुनें या पढ़ें।
चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को दूध, जल, अक्षत और सफेद पुष्प मिलाकर अर्घ्य दें।
6️⃣ व्रत पारण:
चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करें और भगवान को अर्पित प्रसाद ग्रहण करें।
📢 महत्वपूर्ण सूचना (Disclaimer)
इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक संदर्भों पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल सामान्य जानकारी प्रदान करना है। किसी भी स्वास्थ्य, ज्योतिष या धार्मिक उपाय को अपनाने से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।
