ब्रुसेल्स स्प्राउट : जानिए इस सब्जी की विशेषता और खेती करनी की विधि, आय में दोगुनी वृद्धि
आजकल ज्यादातर किसान अपने खेती से अधिक से अधिक लाभ कमाने के लिए कई तरह के कार्य कर रहे है आजकल किसान परम्परागत फसलों के साथ साथ अलग अलग वैरायटी की सब्जियों की खेती भी कर रहे है

आजकल ज्यादातर किसान अपने खेती से अधिक से अधिक लाभ कमाने के लिए कई तरह के कार्य कर रहे है आजकल किसान परम्परागत फसलों के साथ साथ अलग अलग वैरायटी की सब्जियों की खेती भी कर रहे है जिनकी बाजार में काफी अच्छी मांग रहती है अगर आप भी खेत में उन्नत विधि से करते है तो आपकी आय में वृद्धि हो सकती है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसी सब्जी के बारे में बता रहे है जिसका नाम ब्रुसेल्स स्प्राउट है। इस सब्जी को बेबी पत्तागोभी भी कहा जाता है इस गोभी की कीमत बाजार में काफी ज्यादा रहती है वहीं यह सब्जी अन्य सब्जियों के मुकाबले काफी अच्छी होती है इसमें भरपूर मात्रा में पौष्टिक तत्व पाए जाते है जो खरतनाम बीमारियों से लड़ने में मदद करते है।
ब्रुसेल्स स्प्राउट की खेती कैसे करे
ब्रुसेल्स स्प्राउट की खेती के लिए वैसे तो किसी खास तरह की मिट्टी की जरूरत नहीं होती है लेकिन ब्रुसेल्स स्प्राउट की खेती हिमाचल प्रदेश, उत्तरी भारत के मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों के किसानों द्वारा सबसे अधिक की जाती है। इस सब्जी की खेती हल्की दोमट मिट्टी, बलुई दोमट और हल्की चिकनी मिट्टी में अच्छे से की जा सकती है। इसके अलावा ब्रुसेल्स स्प्राउट्स से अच्छी उपज कार्बाशयुक्त जल निकास वाली हल्की दोमट में मिलती है।इसकी खेती को करने से पहले अपने खेत में 2-3 बार कल्टीवेटर या फिर रोटावेटर के माध्यम से जुताई करनी चाहिए। फिर मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद उसमें पाटा लगाना चाहिए।
बुवाई- कटाई के समय खाद
इस सब्जी का सबसे अच्छा समय सितम्बर से नवंबर का महीना होता है वहीं यदि आप पहाड़ी इलाको में इसकी खेती कर रहे है तो मार्च और अप्रैल का महीना सही होता है। वहीं बुवाई से पहले मिट्टी में कंपोस्ट या फिर केंचुआ खाद को अच्छे से मिलाकर क्यारियां बना लेनी चाहिए।
सिंचाई
ब्रुसेल्स स्प्राउट सब्जी की खेती से अच्छे उत्पादन पाने के लिए गोबर की सड़ी हुई खाद, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की खाद इस्तेमाल कर सकते है। इसके साथ ही आप खेत में रोपे गए पौधों को कम से कम 20 दिन हो जाए तो उसमें नाइट्रोजन डालना चाहिए। जब यह पत्तागोभी 3-4 सेंटीमीटर की मोटाई व गोलाई में आ जाए तो किसानों को इसकी कटाई कर लेनी चाहिए।