आड़ू की खेती से किसानों को होता है जबरदस्त फायदा, जानिए इसकी उन्नत किस्म और उपयुक्त दशाओ के बारे में

 
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आडू का फल एक पर्णपाती पेड़ है जिसकी गिनती गुठली वाले फलों में की जाती है। आड़ू के फलो को खाया भी जाता है। इसके साथ ही ऑर्डर से कैंडी जैम और जेली जैसी चीजें भी बनाई जाती है। इसके फल में शक्कर की मात्रा ज्यादा होती है। इसके कारण इसका फल अधिक स्वादिष्ट और रसीला होता है। इसके अलावा आडू की गिरी के तेल का इस्तेमाल कई प्रकार के कॉस्मेटिक उत्पाद और दवाइयों बनाने में किया जाता है इसमें लोहे क्लोराइड और कोटेशन की भरपूर मात्रा होती है औरों की डिमांड ज्यादा होने से इसकी खेती काफी लाभदायक है। 

उपयुक्त जलवायु
आड़ू की खेती के लिए जलवायु ज्यादा ठंडी और ज्यादा गर्म नहीं होने चाहिए और इस स्पेशल को कुछ निश्चित समय के लिए 7 डिग्री सेल्सियस से भी कम तापमान की जरूरत होती है। सर्दी में देर तक पाला पड़ने वाली जगह पर खेती उपयुक्त नहीं होती है। आड़ू की खेती मध्य प्रदेश क्षेत्र घाटी तराई और भावर क्षेत्रों में की जाती है। 

भूमि
आड़ू की खेती के लिए सबसे अच्छी मिट्टी बलुई दोमट है पर गहरी और उत्तम जल निकासी वाली होनी चाहिए साथ ही मिट्टी का पीएच मान 5 से ६ तक होना चाहिए। आड़ू की खेती के लिए जीवाश्म युक्त मिट्टी होनी जरूरी है। 

खेती की तैयारियां
आड़ू की खेती है बागवानी करने के लिए खेत की पहले जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद दो से तीन बार जुताई आड़ी तिरछी देसी हलिया अन्य यंत्र से करनी चाहिए। इसके बाद खेत को समतल बना लेना चाहिए और रोपाई या बुवाई से 15-20 दिन पहले 1 x 1 x 1 मीटर के गड्ढे खोद कर धूप में छोड़ देना चाहिए। एक मीटर के गड्ढे खोदकर धूप में छोड़ देना चाहिए फिर 15 से 25 किलोग्राम गली सड़ी गोबर की खाद 150 ग्राम नाइट्रोजन 50 ग्राम फास्फोरस सौ ग्राम पोटाश और 25 मिलीलीटर क्लोराइड के मिश्रण से गड्ढों को भरने के बाद सिंचाई करें ताकि मिट्टी दिक्कत न हो जाए। 

बुवाई का समय
आड़ू के पेड़ो को सर्दी के मौसम में लगाया जाना चाहिए आड़ू के सबसे ज्यादा पौधों को दिसंबर और जनवरी महीने में उगाया जाता है। इसके अलावा अधिक ठंडे पर्वतीय प्रदेशों में इन्हें फरवरी महीने में भी उगा सकते हैं। also read : 
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पौधरोपण
बुवाई के लिए सबसे पहले गड्ढों के बीचोंबीच एक छोटे आकार और गड्ढा बनाएं छोटे गड्ढे तैयार करने के बाद उन्हें बविष्टिन या गोमूत्र से उपचारित करें। फिर वह दो को गांव में लगाने के बाद उनके चारों तरफ जड़ से 1 सेंटीमीटर ऊंचाई तक मिट्टी डाल कर अच्छे से दवा लेना चाहिए। बुवाई के लिए फोटो के बीच 6 से 6 मीटर की दूरी रखना चाहिए। 

सिंचाई
आड़ू के पौधों की रोपाई के तत्काल बाद पानी देना चाहिए. फूलों के अंकुरण, कलम लगाने की अवस्था, फलों के विकास के समय फसल को सिंचाई की जरूरत होती है। आड़ू की खेती में सिंचाई के लिए ड्रीप सिंचाई विधि बहुत अधिक फायदेमंद मानी जाती है। 

फल तुड़ाई और पैदावार
अप्रैल से मई में आड़ू की फसल के लिए मुख्य फल तुड़ाई का समय होता है इनका बढ़िया रंग और नरम गुद्दा पकने के लक्षण हैं, आड़ू की तुड़ाई पेड़ को हिला कर की जाती है। वहीं सामान्य परिस्थितियों में प्रति हेक्टेयर 90-150 क्विंटल तक आड़ू की उपज मिलती है।