Millet 2023: भारत में प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है मोटे अनाजों का उल्लेख, शरीर की इम्युनिटी के लिए होता है बेहद फायदेमंद

 
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साल 2023 को अन्तर्राष्ट्रीय पोषक वर्ष के रूप मनाया जा रहा है। मोटे अनाज के प्रति लोगो में जागरूकता फैलाई जा रही है। ताकि लोग अपनी डाइट में शामिल कर सके। गेहूं चावल के मुकाबले मोटा अनाज उगाना और खाना दोनों ही ज्यादा सुविधाजनक है। मिलेट में पोषण काफी अधिक होता है। जिससे शरीर की इम्युनिटी मजबूत होती है और बीमारियों से लड़ने की शक्ति भी काफी अधिक होती है। केंद्र सरकार ने अपने बजट में मिलेट को बढ़ावा देने के लिए श्री अन्न योजना चलाई है। पीएम मोदी ने बताया कि कर्नाटक में मोटा अनाज को सिरी धान्य कहते हैं। यहां के लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए इसे श्री अन्न नाम दिया गया है।  इससे पहले भी हमारे प्राचीनतम साहित्यों में श्री अन्न का उल्लेख मिलता है। 

हमेशा से रही श्री अन्न की परंपरा
भारत एक कृषि प्रधान देश है। पिछले कुछ वर्षो से गेहूं चावल खाने का चलन बढ़ गया है लेकिन इससे पहले देश में मोटा अनाज से समृद्ध था। यहाँ पर लोगो पहले से ही मोटा नाज खाकर निरोगी काया का वरदान ले चुके है इससे तमाम तरह के व्यंजन बनाये है। इस बात का उल्लेख तमाम पुराने दस्तावेजों और साहित्यों में मिलता हैं. इनमें बताया गया है कि बाजरा हमारी डाइट से लेकर पाक कला, अनुष्ठानों और बड़े लेवल सोसाइटी का ही एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। 

यजुर्वेद में मिलेट का उल्लेख
यजुर्वेद में भी मोटा अनाज की खेती और इसके इस्तेमाल का उल्लेख मिला है। इतना ही नहीं, सुश्रुत ने अपनी सहिंता में अनाजों को अलग-अलग वर्गों में विभाजित किया है, जिसमें धन्य वर्ग, खुधान्य वर्ग और समिधान्य वर्ग आदि. इनमें खुधान्य वर्ग में कई प्रकार के मोटा अनाज का इस्तेमाल होता रहा है। 

कन्नड में भी मोटा अनाज से संदेश
कन्नड कवि कनकदास ने अपनी रचना रामधन्या चरित्र में रागी को कमजोर वर्ग के अनाज के तौर पर चिन्हित किया है। उस समय रागी ने शक्तिशाली चावल के तौर पर बाकी अनाजों में अपनी जगह बनाई और समाज को सेहतमंद और शक्तिशाली बनने का संदेश दिया। इसके अलावा, कौटिल्य ने भी अपने अर्थशास्त्र में मोटा अनाज के सही इस्तेमाल की विधि बताई है। कौटिल्य ने लिखा है कि भिगोने और उबालने पर बाजरा के कई गुण समाहित हो जाते हैं। also read : 
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