गेंहू की ये 3 वैरायटी देती है 6 महीने में देगी जबरदस्त पैदावार, हीट वेव का भी नहीं पड़ता कोई असर

 
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भारत में किसान अपनी खेती करने के लिए अलग अलग उपाय अपनाते है इस बार कृषि के वैज्ञानिको ने गेंहू की 3 नई किस्मों का विकास किया है जो न केवल उत्तम उत्पादन प्रदान करेगी। बल्कि बीमारियों में भी काफी फायदेमंद होते है यह उन्नत गेंहू की नई वाणिज्यिक किस्म है जो किसानों को बेहतर उपज और मुनाफा प्रदान कर सकती है।

जलवायु परिवर्तन और गेंहू की प्रतिक्रिया 
पृथ्वी के बढ़ते हुए तापमान के साथ, गेंहू का उत्पादन भी प्रभावित होती है। इस परिस्थिति में, वैज्ञानिकों ने हीट वेव के गेंहू की प्रतिरोधी वैराइटियों का विकास किया है ताकि उन्नत उत्पादन के साथ साथ तापमान में परिवर्तन किया जा सके। 

गेंहू की तीन वैरायटी का हुआ विकास 
DBW-371 (करण वृंदा)

यह गेहूं की वैराइटी सिंचाई वाले क्षेत्रों में अगेती बुआई की जाती है। इसका उत्पादन क्षमता 87.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और औसत उपज 75.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसके पौधों की ऊँचाई 100 सेमी है और पकने की अवधि 150 दिन होती है। यह वैराइटी प्रोटीन कंटेंट में 12.2%, जिंक में 39.9 पीपीएम और लौह तत्व में 44.9 पीपीएम का होता है।

DBW-370 (करण वैदेही)
इस वैराइटी का उत्पादन क्षमता 86.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और औसत उपज 74.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। पौधों की ऊँचाई 99 सेमी है और पकने की अवधि 151 दिन होती है। इस वैराइटी में प्रोटीन कंटेंट 12.0%, जिंक में 37.8 पीपीएम और लौह तत्व में 37.9 पीपीएम होता है।

DBW-372 (करण वरुणा)
इस वैराइटी का उत्पादन क्षमता 84.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और औसत उपज 75.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। पौधों की ऊँचाई 96 सेमी है और पकने की अवधि 151 दिन होती है। इस वैराइटी में प्रोटीन कंटेंट 12.2%, जिंक में 40.8 पीपीएम और लौह तत्व में 37.7 पीपीएम होता है।

किसानों के लिए उपयोगिता 
गेंहू की ये वैरायटी सभी प्रमुख रोगजनक प्रकारो के खिलाफ प्रतिरोधी किस्म है और उन्नत उत्पादन के साथ साथ तापमान परिवर्तन के प्रभाव से भी बचाती है इनमें से DBW-370 और DBW-372 किसानों के लिए करनाल बंट रोग प्रति अधिक प्रतिरोधी प्रदान करती है।

क्षेत्रीय उपयोग 
गेंहू की यह उपज देश में गंगा-सिंधु क्षेत्र में, जैसे कि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कठुआ, हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला और पोंटा घाटी, तराई क्षेत्र में काफी उपयोगी होती है। also read : 
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