जान लीजिए, पुराने घी और नए घी में अंतर, एंग्जाइटी, नींद न आना, घबराहट, भूलने जैसी बीमारी में किस तरह से लाभकारी होता है घी

 
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दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. शिवानी घिल्डियाल का कहना है कि पुराना घी तेज गंध वाला होता है इसकी गंध अच्छी नहीं होती है लेकिन सामान्य घी की तुलना में इसमें मेडिसिनल वैल्यू भी अधिक होती है कई स्टडीज के मुताबिक, बता दे पुराने घी में गुण और रूप दोनों होते है। पुराने घी को नए घी की तरह दाल में नहीं डाला जाता और न ही रोटी पर लगाया जा सकता है। लेकिन आपको बता दे, पुराने घी को नाक के जरिए दिया जाता है। नाक को सिर का द्वार कहा गया है। नाक में पुराने घी की दो बूंदें पर्याप्त हैं। यह सीधे ब्रेन तक पहुँचता है हालाँकि इसका हर एक डोज बीमारी के हिसाब से अलग अलग होता है। यदि आप नाक की घी नहीं डाल सकते है तो आप अंगुली की मदद से नाकों में लगा सकते है। इससे एंग्जाइटी, नींद न आना, घबराहट, भूलने की बीमारी जैसी बीमारियों से राहत मिलती है। 

नए घी और पुराने घी में अंतर 
नया घी खाने के लिए अच्छा होता है जबकि पुराना घी औषधि के रूप में ज्यादा अच्छा है।
नए घी में गंध अच्छी होती है जबकि पुराने घी की गंध सौंधी होती है। इसे आयुर्वेद में उग्रगंधी कहा गया है।
नया घी का रंग पीला होता है लेकिन जैसे जैसे घी पीला होता जाता है इसके कलर में भी बदलाव आता है। 
नए घी को खाते हैं तो इसका टेस्ट मीठा होता है लेकिन पुराना घी कड़वा हो जाता है। 

एक्जिमा जैसी बीमारियों में फायदेमंद 
पुराना घी देखने में दानेदार होता है और इसमें सौंधी खुशबू होती है। पुराने घी को प्रयोग में लाने से ओजस की बढ़ोतरी होती है। तेजस और प्राण भी बढ़ता है। आयुर्वेद में ओजस, तेजस और प्राण को जीवन ऊर्जा बताया गया है। अधिक लंबे समय तक घी को रखने से उसमें हर सेल की लाइफ बढ़ जाती है। इसके इस्तेमाल से एक्जिमा और सोरायसिस जैसी बीमारियां ठीक होती हैं। पुराने घी को स्किन पर लगाने से कई बीमारियों में राहत मिलती है। एग्जिमा जैसे रोग भी ठीक होते हैं।

आँखों की रौशनी बढ़ने में मदद करे पुराना घी 
आंखों की तकलीफ को दूर करने के लिए पुराना घी काफी फायदेमंद होता है। इसमें आंखों के चारों ओर उड़द के आटे का घेरा बनाया जाता है। इस पर पुराना घी लगाया जाता है। पुराने समय में घी को मटकों में सालों रखा जाता था। पहले के समय में लोग पुराना घी का इस्तेमाल कर आंखों की बीमारियों से बचे रहते थे।

मिर्गी में पुराने घी का इस्तेमाल फायदेमंद
आपको बता दे, क्षय यानी टीबी रोग में भी पुराने घी का सेवन किया जाता है। जिन्हें मिर्गी के दौरे पड़ते हैं उन्हें पुराने घी का सेवन करने से फायदा होता है। घी को पित्त का उत्तम शामक माना जाता है। यानी यह शरीर में बढ़े पित्त को कम करता है।

फोड़े-फुंसी ठीक करने में मेडिसिन की तरह काम करता है पुराना घी 
पुराना घी का सेहत के लिए अच्छा होने के साथ साथ स्कीन प्रॉब्लम्स में भी काफी लाभकारी होता है। इस घी को पुराने समय में घाव को ठीक करने में घी का इस्तेमाल किया जाता था। चोट लगने या फोड़ा-फुंसी होने पर पुराने घी को लगाया जाता था और उस पर पट्‌टी बांधी जाती थी। इससे घाव को जल्द भरने में मदद मिलती थी।

किन बातों का रखें ध्यान
ताजा घी सालभर के बाद इस्तेमाल कर सकते है। 
घी के कंटेनर में पानी में भीगा चम्मच न डालें।
गाय का घी प्रयोग में लाएं।

ताजे शहद से होता है मोटपा कम और चर्बी बढ़ाने में करे मदद 
पेट की चर्बी को कम करने के लिए आप गर्म पानी के साथ में शहद का भी इस्तेमाल कर सकते है लेकिन लोग अनजाने में ताजे शहद का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन आपको बता दे, ताजा शहद का सेवन करने से पेट की चर्बी कम नहीं होती है बल्कि इससे कफ बढ़ता है और इससे ओबेसिटी होती है। चर्बी कम करने के लिए पुराने शहद का इस्तेमाल करना चाहिए। पुराने घी की तरह सालभर पुराने शहद को ही पुराना माना जाता है। शहद में कई तरह के विटामिन्स, मिनरल्स और अमीनो एसिड्स पाए जाते हैं। इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स गुण मौजूद होते है। 

पुराना गुड़ खाने से यूरिन साफ होता है 
गन्ने के रस से बना गुड़ ही बाजार में पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है। गुड़ का मतलब है साल या दो साल पुराना गुड़। ताजा गुड़ देखने में पीला या हल्का भूरा होता है लेकिन पुराना गुड़ देखने में गहरा भूरा या काला रंग का होता है। पुराना गुड़ सुबह-शाम खाने से यूरिन साफ होती है। यदि किसी को पीला यूरिन हो रहा है तो इसमें पुराना गुड़ फायदा पहुंचाता है। इससे स्पर्म भी बढ़ता है।

कैसे पहचानें नए और पुराने गुड़ में फर्क
नया गुड़ का रंग भूरा होता है जबकि पुराना गुड़ गहरा भूरा या काला होता है
नए गुड़ में मॉइश्चर कम होता है जबकि पुराने गुड़ में मॉइश्चर अधिक मात्रा में होता है। 
नए गुड़ में फ्रक्टोज और ग्लूकोज की मात्रा अधिक होती है जबकि पुराने गुड़ में कम होती है।
नए गुड़ में लैक्टिक, एकोनाइटिक एसिड, सिट्रिक एसिड जैसे ऑर्गेनिक एसिड अधिक होते हैं जबकि पुराने गुड़ में ये कम होते हैं।also read : 
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