आइए जानते है की कहि अंग्रेजी शराब के नाम पर कहि हम देसी तो नहीं पी रहे ?

 
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 भारत में अंग्रेजी के नाम पर बिक रही अधिकतर शराब और देसी में कोई ज्यादा फर्क नहीं।भारत में शराब पीने वाले मानते है की अंग्रेजी और देसी दो अलग छोर पर होते  तो बहुत सारे लोग हैरान हो जाएंगे आइए जानते है 
 
 भारत में अंग्रेजी के नाम पर बिक रही अधिकतर शराब और देसी में कोई ज्यादा फर्क नहीं, तो बहुत सारे लोग हैरान हो जाएंगे. जी हां, यह बिलकुल सही ह एक और चौंकाने वाला सच जानिए. दुनिया में सबसे ज्यादा व्हिस्की पीने वाले इस देश की अधिकतर जनता व्हिस्की की जगह रम जैसी कोई चीज पी रही है. इससे पहले कि एक और चौंकाने वाला सच जानिए. दुनिया में सबसे ज्यादा व्हिस्की पीने वाले इस देश की अधिकतर जनता व्हिस्की की जगह रम जैसी कोई चीज पी रहे है।देसी शराब बोलते ही दिमाग में छवि आती है रंग-बिरंगी, बदबूदार और कड़वी इतनी कि हलक से उतारना भी मुश्किल,घटिया सी पॉलीथीन या  प्लास्टिक की बोतल में मिलने वाली गरीबों की शराब. वहीं, अंग्रेजी यानी एलीट क्लास की चीज़ विदेश से आने वाली शराब को छोड़ दे तो हमारे यहां अंग्रेजी का मोटामोटी मतलब इंडियन मेड फॉरेन लिकर (IMFL) है। इससे पहले कि आप और ज्यादा हैरान हों, इस मुद्दे को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं। 


देसी शराब और अंग्रेजी शराब में क्या फर्क है जानते है

अंग्रेजी या इंडियन मेड फॉरेन लिकर (IMFL) को आईएफएल का बेस तैयार करने में इसी रेक्टिफाइड स्पिरिट का प्रयोग होता है यानी भारत में बिकने वाली अधिकांश IMFL को तैयार करने में देसी शराब का इस्तेमाल होता है फर्क सिर्फ इतना है यह अंग्रेजी या आईएमएफएल रेक्टिफाइड स्पिरिट  या देसी शराब की तुलना में ज्यादा डिस्टिलेशन की प्रक्रिया से गुजरता है। देसी शराब को तकनीकी भाषा में रेक्टिफाइड स्पिरिट (Rectified Spirit) या रेक्टिफाइड ग्रेन स्पिरिट भी कहते हैं. इसे समुचित डिस्टिलेशन और अन्य निर्माण प्रक्रिया से गुजारकर तैयार किया जाता है. देसी शराब को बनाने में शीरे या अन्य कृषि उत्पादों का  इस्तेमाल किया जाता है।  अंग्रेजी का देसी पर पलड़ा भारी बस ज्यादा और बेहतर डिस्टिलेशन प्रक्रिया और फ्लेवर की वजह से है. कम डिस्टिलेशन और फ्ले फ्लेवर की वजह से है. कम डिस्टिलेशन और फ्लेवसर्स आदि की गैरमौजूदगी की वजह से ही देसी शराब का स्वाद कड़वाहट भरा होता है। IMFL देसी के मुकाबले ज्यादा परिष्कृत होता है. देसी या रेक्टिफाइड स्पिरिट को विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजारकर और उसमें फ्लेवर आदि मिलाकर ही अंग्रेजी  या आईएमएफएल तैयार करते है। 

अंग्रेजी शराब और देसी शराब के कीमत में फर्क क्यों 

 कुछ आला देसी शराब कंपनियां ही अंग्रेजी या इंडियन मेड फॉरेन लिकर बनाने वाली कंपनियों को बेस स्पिरिट मुहैया कराती हैं. अंग्रेजी बनाने के लिए इस्तेमाल यह रेक्टिफाइड स्पिरिट उच्च क्वॉलिटी की होती है जिसे ग्रेड-1 रेक्टिफाइड स्पिरिस्पिरिट या एक्स्ट्रा न्यूट्रल स्पिरिट भी कहते है। यह बात तो साफ हो गई कि देसी वो जहरीली शराब नहीं, जिसे पीकर लोगों के मरने की खबरें आती हैं. दरअसल कुछ अकुशल लोगों द्वारा गैरकानूनी ढंग से शराब बनाने की प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ियों की वजह से जहरीली शराब बनती है. वहीं, देसी शराब बनाने के लिए उच्च क्वॉलिटी की तकनीक का इस्तेमाल होता है । सरकारें अंग्रेजी शराब या IMFL पर देसी या रेक्टिफाइड स्पिरिट की तुलना में काफी ज्यादा टैक्स वसूलती हैं. ऐसे में कोई देसी शराब कंपनी अपने बेस स्पिरिट को बेहतर क.करके अंग्रेजी शराब के नाम पर उसे बेचना भी चाहे तो उसे काफी ज्यादा टैक्स चुकाना होगा। अगर अंग्रेजी और देसी को बनाने वाला बेस स्पिरिट एक ही है तो दोनों की कीमतों में इतना फर्क क्यों है?  यानी निर्माण प्रक्रिया की लागत को छोड़ भी दें तो दोनों के बीच  टैक्स के इस बड़े अंतर की वजह से ही देसी शराब अंग्रेजी के मुकाबले ज्यादा सस्ती होती है।  

व्हिस्की के नाम पर रम 

 रम की इंटरैशनल.स्वीकार्य परिभाषा भी यही है कि इसे बनाने में शीरे का इस्तेमाल हो. इंटरनैशनल मानकों के मुताबिक, व्हिस्की तैयार करने में मॉल्टेड ग्रेन का इस्तेमाल होना चाहिए शीरा नहीं। भारत में IMFL की श्रेणी में बिक रही बहुत सारी व्हिस्की असल में व्हिस्की न होकर रम हैं. जी हां, यह भी एक बड़ा  है. दरअसल, इन देसी व्हिस्कियों को बनाने में गन्ने से चीनी तैयार करने के दौरान उत्पन्न होने वाले बाय-प्रोडक्ट शीरे का इस्तेमाल होता है। IMFL की श्रेणी में आने वाली अधिकतर व्हिस्की को शीरे से  तैयार किए जाने के बाद ही असली खेल होता है।  इसमें व्हिस्की का फ्लेवर या  कोई महंगी स्कॉच व्हिस्की थोड़ी मात्रा में मिलाकर फाइनल प्रोडक्ट तैयार किया जाता है यानी आम नजरिए से देखें तो IMFL की श्रेणी में आने वाली बहुत सारी  व्हिस्की दरअसल रम या देसी शराब हैं, लेकिन व्हिस्की तो कतई नहीं हैं।    

 ग्लोबल स्टैंडर्ड क्या है

 अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक, व्हिस्की को पीपों में कुछ सालों तक रखने की प्रक्रिया यानी एजिंग से भी गुजारना जरूरी है. वहीं, आईएफएफएल की श्रेणी में आने वाली इन भारतीय व्हिस्कियों की एजिंग करना कानूनी तौर पर जरूरी नहीं। भारत में व्हिस्की निर्माण को लेकर तयशुदा मानक इतने सख्त नहीं हैं. यहां ग्लोबल लेवल पर तय स्टैंडर्ड का पालन करने की कानूनी बाध्यता नहीं है. भारत में स्वीकृत व्हिस्की की परिभाषा में यह माना जा चुका है कि इसे बनाने में मॉल्टेड ग्रेन के अलावा न्यूट्रल ग्रेन स्पिरिट या रेक्टिफाइड ग्रेन स्पिरिट या दोनों का ही इस्तेमाल किया जा सकता है। व्हिस्की को खास किस्म की लकड़ियों के पीपे में सालों तक एजिंग की प्रक्रिया से गुजारने से लेकर बॉटलिंग तक शामिल है। दुनिया में व्हिस्की की आदर्श परिभाषा यह है कि इसे तैयार करने में फर्मेंटेशन की प्रक्रिया से गुजरे हुए मॉल्टेड ग्रेन  (malted grains) या अनाज  मसलन- जौ  मक्का, गेहूं आदि का इस्तेमाल किया जाए. स्कॉच और बरबन जैसी विश्व विख्यात व्हिस्की को बनाने में तो और भी सख्त मानकों को अपनाया जाता है।   व्हिस्की के अलावा ब्रांडी, जिन, वोदका आदि के बहुत सारे भारतीय वर्जन भी अंतरराष्ट्रीय मानकों के उलट इसी शीरे से तैयार किए जाते हैं दरअसल, पूरी दुनिया में शराब ज्यादा कृषि उत्पादन वाले अनाजों से तैयार होता है. स्कॉटलैंड में जौ या अमेरिका में मक्का इसका उदाहरण है भारत में IMFL की श्रेणी में आने वाली अधिकतर व्हिस्की को शीरे से तैयार किया जाता है. इसे डिस्टिलेशन की प्रक्रिया से गुजारकर न्यूट्रल स्पिरिट तैयार किया जाता है. इसी न्यूट्रल स्पिरिट में स्कॉच या दूसरी व्हिस्की की कुछ मात्रा और फ्लेवर मिलाकर तैयार हो जाती है अपनी 'इंडियन मेड व्हिस्की'. वाइन एक्सपर्ट कहते हैं। उसी तरह से भारत मे सदियों से गन्ने का उत्पादन बहुत ज्यादा होता है. शायद यही वजह है कि चीनी तैयार की प्रक्रिया में बनने वाला यह बायप्रोडक्ट यानी शीरा शराब निर्माण में में इतना ज्यादा इस्तेमाल होता है। 

भारत भी बनता है टॉप क्लास शराब 

 स्कॉटलैंड में स्कॉच या अमेरिक में बरबन व्हिस्की बनाते समय होता है. विदेशों में इन हाई क्वॉलिटी भारतीय शराब की अच्छी खासी खपत भी है। भारत में कुछ कंपनियां आला दर्जे के सिंग मॉल्ट और दूसरी किस्म की शराब तैयार करती हैं, जिनको बनाने की प्रक्रिया में उन्हीं उच्च मानकों को अपनाया जाता है। एल्कॉहलिक प्रोडक्ट काफी महंगे होते है।  वाइन इंडस्ट्री से जुड़े लोग मानते हैं कि भारत में भी धीरे धीरे इंटरनैशनल मानको को अपनाया जाना चाहिए वहीं, तब तक बिना मॉल्ट या बिना एजिंग प्रोसेस शीरे से तैयार होने वाली इस शराब को 'इंस्पायर्ड स्पिरिट' की श्रेणी में रख देना चाहिए। ग्लोबल स्टैंडर्ड के मुताबिक इसे अनाज से तैयार करना बेहद महंगा है. ऐसा नहीं किया होता तो अधिकतर शराब की किस्में आम लोगों की पहुंच से दूर हो जातीं।