इंसानी दिमाग को पढ़ने वाला AI मॉडल हुआ डेवलेप, आपके दिमाग में क्या चल रहा है इस बात का लगा सकेगा अनुमान

 
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हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ऑस्टिन के यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के वैज्ञानिकों ने ह्यूमन थॉट्स को टेक्स्ट में कन्वर्ट करना पॉसिबल बना दिया है। कंप्यूटर साइंस के डॉक्टरेट स्टूडेंट जेरी टैंग और न्यूरोसाइंस और कंप्यूटर साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर एलेक्स हथ के नेतृत्व में हुई ये स्टडी एआई की दुनिया में एक महत्वपूर्ण सफलता है। 

वैज्ञानिकों ने इस स्टडी के दौरान फंक्शनल मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (fMRI) मशीन का इस्तेमाल तीन ह्यूमन सब्जेक्ट के 16 घंटे की ब्रेन एक्टिविटी को रिकॉर्ड करने के लिए किया जब वे नैरेटिव स्टोरीज सुन रहे थे। यहां रिसर्चर्स न्यूरल रिस्पॉन्स की पहचान करने में सक्षम थे जो अलग-अलग शब्दों के अनुरूप थे। 

इसके बाद टीम ने इस ब्रेन एक्टिविटी को डीकोड करने और इसे टेक्स्ट में ट्रांसलेट करने के लिए ChatGPT की तरह कुछ कस्टम-ट्रेंड GPT AI मॉडल की मदद ली। हालांकि, पार्टिसिपेंट्स के सटीक विचारों को कैप्चर नहीं किया जा सका है। केवल पार्टिसिपेंट्स जो सोच रहे थे उसका एक सार AI ने ट्रांसलेट किया। 

वैज्ञानिकों ने बताया कि रिजल्ट में 82 प्रतिशत तक की एक्यूरेसी थी। परसीव स्पीच को डिकोड करने में AI मॉडल की एक्यूरेसी 72-82 प्रतिशत तक थी। वहीं, इमेजिन स्पीच को डिकोड करने में ये 41-74 प्रतिशत तक सटीक था। वहीं, साइलेंट मूवी के इंटरप्रिटेशन में एक्यूरेसी रेंज 21-45 प्रतिशत था। 

इन रिजल्ट्स को नेचर नेयूरोसाइंस जर्नल में पब्लिश किया गया है। सबसे खास बात ये है कि इस प्रक्रिया को बिना किसी ब्रेन इंप्लांट की मदद से पूरा किया गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये एक बड़ी सफलता है और इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल ऐसे लोगों की मदद के लिए किया जा सकेगा जो खुद को अभिव्यक्त करने में शारीरिक रूप से अक्षम हैं। हालांकि, अभी ये टेक्नोलॉजी डेवलपिंग स्टेज में है. इसमें अभी काफी काम बाकी है। 

दूसरी तरफ वैज्ञानिकों ने इसके संभावित दुरुपयोग पर भी चिंता जताई है। उन्होंने चेतावनी दी कि इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल गलत उद्देश्यों जैसे सरकार पर निगरानी रखने के लिए भी किया जा सकता है। साथ ही ये मेंटल प्राइवेसी के लिए भी खतरा बन सकती है।