होली 2023 : रंगो के इस त्यौहार पर होलिका दहन के समय क्यों चढ़ाया जाता है अनाज, यहाँ जानिए

 
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इस साल होलिका दहन के दिन पंचांग भेद होने की वजह से 6 और कुछ जगहों पर 7 मार्च को होलिका दहन किया जायेगा। होली झलने के बाद में 8 मार्च को होलाष्टक खत्म होगा। प्रहलाद की जीत के साथ ही होली नई फसल और बसंत के आने का पर्व भी है। इस दिन जलती होली में अनाज चढ़ाने की परंपरा है।कोटिश शास्त्र के मुताबिक दहन की रात को की गयी साधना का काफी महत्व होता है जो लोग मंत्र और तंत्र से जाप करते है। उन्हें अपने गुरु से अवश्य परामर्श लेनी चाहिए। इस दिन साधना करने से जल्द ही सफलता मिलती है। तो आइये जानते है इससे जुडी हुई मान्यता 

 जलती हुई होली में अनाज क्यों को चढ़ाते हैं?
आपको बता दे, इस समय खासतौर पर गेहूं की पकने लगती है। पुराने समय से फसल आने पर उत्सव मनाने की परंपरा चली आ रही है। फसल पकने की खुशी में होली मनाने की और रंग खेलने की परंपरा है। किसान जलती हुई होली में नई फसल का कुछ भाग अर्पित करते हैं। दरअसल, जब भी कोई फसल आती है तो उसका कुछ भाग भगवान को, प्रकृति को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है। जलती होली में अनाज डालना एक तरह का यज्ञ ही है। ये नई फसल के लिए भगवान का आभार मानने का पर्व भी है।

बसंत का आगमन 
होली के समय से ही बसंत ऋतु की शुरुआत हो जाती है। बसंत को ऋतुराज कहा जाता है और इस ऋतु के आने पर होली के रूप में उत्सव देशभर में बड़े धूमधाम के साथ में मनाया जाता है। पुराने समय में फाल्गुन महीने की पूर्णिमा के दिन कामदेव ने भगवन शिव की तपस्या को भांग करने के लिए बसंत ऋतु को को प्रकट किया था। जिससे भगवन शिव की तपस्या भाग हो जाने के कारण उन्होंने कामदेव को बज़्म कर दिया था। बसंत के आगमन पर काफी सुवाहना मौसम होता है। तभी से होली पर रंगों से खेलने की परंपरा शुरू हुई है। उस समय फूलों से रंग बनाए जाते थे।

भक्त प्रहलाद की कथा 
होली के संबंध में प्रहलाद और होलिका की कथा सबसे ज्यादा प्रचलित है। पुराने समय में हिरण्यकश्यपु का पुत्र प्रहलाद विष्णु जी का परम भक्त था। ये बात हिरण्यकश्यपु को पसंद नहीं थी। इस वजह से वह प्रहलाद को मारना चाहता था। असुर राज हिरण्यकश्यपु ने बहुत कोशिश की, लेकिन प्रहलाद को मार नहीं सका। तब असुरराज की बहन होलिका प्रहलाद को लेकर आग में बैठ गई। होलिका को आग में न जलना का वरदान मिला हुआ था, लेकिन विष्णु जी की कृपा से होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया। तभी से प्रहलाद की जीत के रूप में होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है।also read : 
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