इस दिन पड़ रही है निर्जला एकादशी, यहाँ जानिए भगवान विष्णु की पूजा, व्रत कथा और दान पुण्य का महत्व

 
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ज्येष्ठ महीने में आने वाली एकदशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी सभी एकादशी में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। एक एकादशी बेहद कठिन भी होती है। इसे भीमा एकादशी भी कहा जाता है। आपको बता दे, भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए ये व्रत साल में 24 बार पड़ता है। इन सभी एकादशियों को अलग अलग नामों से जाना जाता है। ऐसे में आज हम आपको यहाँ बताने जा रहे है कि भीमा एकादशी कम पड़ रही है और इसकी पूजा विधि का क्या महत्व है। तो आइए जानते है इसके बारे में। 

निर्जला एकादशी कब है ? 
इस बार निर्जला एकादशी दिन मंगलवार को 01 बजकर 07 मिनट से दिन बुधवार को दोपहर 01 बजकर 45 मिनट तक रहेगी. इस व्रत का पारण 01 जून सुबह 5 बजकर 24 मिनट से 8 बजकर 10 मिनट तक रहेगा। 

निर्जला एकादशी पूजा विधि
निर्जला एकादशी का व्रत रखने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच-स्नान आदि से निवृत हो लिया जाता है। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा पूरे भक्ति भाव से करनी चाहिए। इस व्रत में महिलाएं  पूर्ण श्रृंगार और मेंहदी लगाती हैं। व्रत के दौरान पूरे दिन भगवान विष्णु का नाम लेना चाहिए। एकादशी के दिन सोना निषेध माना गया है। एकादशी व्रत की पूजा के बाद कलश के जल से पीपल को जल देना चाहिए। दूसके दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान के बाद भगवान विष्णु और पीपल के नीचे दीपक जलाना चाहिए। इसके बाद ब्रह्मणों को भोजन कराने के बाद दान-दक्षिणा देना चाहिए। इस दिन दान में जल से भरा घड़ा, अन्न, वस्त्र, छाता, पान, शैय्या, आसन, पंखा सोना और गोदान करना चाहिए। 

निर्जला एकादशी के दिन वैसे तो सभी को दान करना अच्छा माना गया है, लेकिन व्रती को इस दिन सामर्थ्य के अनुसार अन्न, वस्त्र, जल, जूता, आसन, पंखा, छतरी और फल इत्यादि का दान करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन जल से भरे कलश का दान करने से बहुत अधिक पुण्य प्राप्त होता है। 

निर्जला एकादशी व्रत के नियम
धार्मिक मान्यता के मुताबिक एकादशी व्रत के नियम दशमी तिथि से ही शुरू हो जाते हैं। दशमी तिथि की रात को अन्न और जल ग्रहण नहीं किया जाता है। वहीं अगले दिन यानी एकादशी तिथि को सूर्योदय से सूर्यास्त तक अन्न और जल ग्रहण नहीं किया जाता है। निर्जला व्रत रखा जाता है। द्वादशी तिथि को पारण के बाद ही जल या अन्न ग्रहण किजा जाता है। also read : 
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