इस बार 14 मार्च और 15 मार्च को है शीतलासप्तमी, जानिए इस व्रत के दिन क्यों खाया जाता है ठंडा भोजन

होली के बाद में सातवे और आठवे दिन माँ शीतला की पूजा की जाती है। इस दिन को शीतला सप्तमी और शीतलाष्टमी कहा जाता है। वहीं कुछ स्थानों पर यह पूजा होली के बाद में पड़ने वाले पहले सोमवार और गुरुवार के दिन की जाती है। शीतला माता की पूजा का जिक्र स्कंद पुराण में मिलता है। पौराणिक मान्यता है कि इनकी पूजा और व्रत करने से चेचक के साथ ही अन्य तरह की बीमारियां और संक्रमण नहीं होता है।
शीतला सप्तमी और अष्टमी
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक देश में कुछ जगह शीतला माता की पूजा चैत्र महीने के कृष्णपक्ष की सप्तमी को और कुछ जगह अष्टमी पर होती है। इस बार ये तिथियां 14 और 15 मार्च को रहेंगी। सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य और अष्टमी के देवता शिव होते हैं। दोनों ही उग्र देव होने से इन दोनों तिथियों में शीतला माता की पूजा की जा सकती है। इस व्रत में सूर्योदय व्यापिनी तिथि ली जाती है। इसलिए सप्तमी की पूजा और व्रत मंगलवार को किया जाना चाहिए। वहीं, शीतलाष्टमी बुधवार को मनाई जाएगी।
इस दिन खाया जाता है ठंडा भोजन
शीतला माता का व्रत एक ऐसा व्रत होता है जिसमे शीतल यानि ठंडा भोजन खाया जाता है। इस व्रत पर एक दिन पहले भोजन बनाया जाता है। और दूसरे दिन खाया जाता है। इसलिए इस व्रत को बसौड़ा या बसियौरा भी कहते हैं। माना जाता है कि ऋतुओं के बदलने पर खान-पान में बदलाव करना चाहिए है। इसलिए ठंडा खाना खाने की परंपरा बनाई गई है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक शीतला माता की पूजा और इस व्रत में ठंडा खाने से संक्रमण और अन्य बीमारियां नहीं होती।
संक्रमित बीमारियों से बचने के लिए अवश्य करे ये व्रत
कहा जाता है शीतला माता चेचक और खसरा जैसी बीमारियों को नियंत्रित करती हैं और लोग उन बीमारियों को दूर करने के लिए उनकी पूजा करते हैं।
आपको बता दे, गुजरात में, कृष्ण जन्माष्टमी से ठीक एक दिन पहले बसोड़ा जैसा ही अनुष्ठान मनाया जाता है और इसे शीतला सातम के नाम से जाना जाता है। शीतला सातम भी देवी शीतला को समर्पित है और शीतला सप्तमी के दिन ताजा खाना नहीं बनाया जाता है।also read :;रंग पंचमी : 12 मार्च को मनाया जा रहा है रंग पंचमी का उत्सव, जानिए क्या है इससे जुड़ी हुई पौराणिक मान्यता