High Court Decision : सरकार समय समय पर भूमि अधिग्रहण करती रहती है। कई बार सरकार की ओर से दिये जाने वाला मुआवजा कम होता है जिससे किसान संतुष्ट नहीं होते हैं। ऐसे में उचित मुआवजे की रकम के लिए कोर्ट में अनेकों मामले सामने आते हैं। कोर्ट की मदद से उन्हें उचित मुआवजा मिल पाता है। हाल ही में जमीन मुआवजे को लेकर एक मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) में सामने आया है जिसपर हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है।
भूमि पर मालिकाना हक और भूमि अधिग्रहण से जुड़े अनेकों मामले आए दिन कोर्ट में सामने आते रहते हैं। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट में भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक मामला सामने आया है जिसपर इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने किसानों और भूस्वामियों के हित फैसला सुनाते हुए कहा है कि भूमि मालिकों को उनकी भूमि का मुआवजा उच्चतम बाजार मूल्य के आधार पर मिलना चाहिए। कोर्ट की ओर से पहले तय की गई रकम को अब बढ़ाकर दिये जाने का आदेश दिया गया है।
मुआवजे की नई दर जारी –
कोर्ट ने पहले तय की गई मुआवजा राशि अब नई दर 17,062 प्रति बिस्वा तय की गई है, जो पहले 26,624 प्रति बीघा थी। यह आदेश न्यायमूर्ति संदीप जैन की एकल पीठ ने रूप नारायण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड (UP State Electricity Board) मामले की सुनवाई के दौरान दिया है।
जानिये क्या है पूरा मामला –
मिर्जापुर जिले के गांव नटवा निवासी रूप नारायण की लगभग 6 बीघा 2 बिस्वा जमीन राज्य विद्युत बोर्ड (Uttar Pradesh State Electricity Board) ने 220 केवी सब-स्टेशन निर्माण के लिए अधिग्रहित की थी। कलेक्टर ने 28 सितंबर 1993 को प्रति बीघा मुआवजा 26,624 तय किया था। वहीं जमीन पर बने कुएं, घर और पेड़ों के लिए क्रमशः 3,076, 13,600 और 10,680 का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।
भूमि मालिक ने की अपील –
नटवा निवासी रूप नारायण ने कलेक्टर के आदेश को अपर्याप्त बताते हुए कोर्ट में अपील की है। पहले मिर्जापुर के विशेष न्यायाधीश (Land acquisition) के समक्ष चुनौती दी थी, परंतु 08 अगस्त 2007 को न्यायालय ने मुआवजे को चेंज नहीं किया। इसके बाद भूमि मालिक रूप नारायण ने इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी और दलील दी कि भूमि के वास्तविक बाजार मूल्य के अनुरूप उचित मुआवजा नहीं दिया गया।
हाईकोर्ट में रखी अपनी बात –
भूस्वामी रूप नारायण ने यह तर्क दिया कि अधिग्रहण के समय आसपास की जमीनों के विक्रय विलेखों (sale deeds) में दर्ज मूल्य के आधार पर उसे जमीन का मुआवजा नहीं दिया गया। कोर्ट (Court Decision) ने मेहरावल खेवाजी ट्रस्ट बनाम मनोहर और अन्य मामलों में दिए गए सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा कि अगर कई विक्रय विलेख उपलब्ध हों, तो भूस्वामी उच्चतम मूल्य वाले विक्रय विलेख के आधार पर मुआवजा पाने का अधिकारी है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनाया महत्वूपर्ण फैसला –
कोर्ट ने तीन बिक्री विलेखों पर विचार किया। जिनमें क्रमशः 34,125, 25,000 और 25,000 प्रति बिस्वा का मूल्य दिया गया था। कोर्ट ने सबसे ज्यादा दर 34,125 को मानक माना, लेकिन यह देखते हुए कि वह छोटे भूखंड (4 बिस्वा) का था, हॉरमल बनाम हरियाणा (Hormal vs Haryana) राज्य मामले के सिद्धांत के मुताबिक 50 प्रतिशत कटौती लागू की गई है। इसके बाद न्यायालय ने अधिग्रहित भूमि का बाजार मूल्य 17,062.50 प्रति बिस्वा निर्धारित किया है।
हाईकोर्ट ने दिया अंतिम निर्देश –
हाईकोर्ट (High Court Decision) ने रूप नारायण की अपील स्वीकार करते हुए निर्देश दिया कि भूस्वामियों को संशोधित दर से बढ़ा हुआ मुआवजा दिया जाए। साथ ही, उन्हें भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत 12 प्रतिशत सालाना अतिरिक्त मुआवजा और ब्याज का लाभ भी मिलेगा। हालांकि कुएं, मकान और पेड़ों के मुआवजे (Land Compensation) में कोर्ट ने कोई बदलाव नहीं किया, क्योंकि इस संबंध में भूस्वामी कोई ठोस साक्ष्य पेश नहीं कर सके थे। यह फैसला न केवल रूप नारायण जैसे किसानों के लिए राहत देने वाला है, बल्कि भविष्य में भूमि अधिग्रहण (Land acquisition) के मामलों में एक मिसाल के रूप में काम करेगा।

 
			 
                                 
                              
		 
		 
		 
		