Property Rights : संपत्ति में हक को लेकर कानून में अलग-अलग प्रावधान हैं। इसी अनुसार अधिकार भी प्रदान किए गए हैं। किस तरह की संपत्ति में किसका कितना अधिकार (property rights news) होगा, कानून में इसकी स्पष्ट व्याख्या भी की गई है। संपत्ति विवाद के एक मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। आइये जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
संपत्ति के विवाद आजकल काफी ज्यादा बढ़ गए हैं। हर दिन कोई न कोई मामला सामने आ ही जाता है। संपत्ति को लेकर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1937 (Hindu Succession Act 1937) बनाया गया था। इसमें पिता की संपत्ति पर सिर्फ बेटों के हक का प्रावधान है, बेटियों के लिए नहीं। इसके बाद इस अधिनियम को 1956 में फिर से बनाया गया था। संपत्ति से जुड़े एक मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपना अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के लागू होने से पहले अगर पिता की मौत हुई है तो उस पिता की बेटियों को उसकी संपत्ति में उत्तराधिकारी (pita ki property me beti ka hak) किसी सूरत में नहीं माना जा सकता। आगे चलकर 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act 2005) में संशोधन किया गया था।
यह कहा बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में
बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act 1956) के लागू होने से पहले अगर मृतक अपने पीछे बेटी और विधवा पत्नी को छोड़कर गया है तो बेटी को पिता की संपत्ति में उत्तराधिकारी नहीं माना जा सकता। इस स्थिति में बेटी पिता की संपत्ति में हिस्सा (pita ki property me beti ka kitna hak hota hai) नहीं मांग सकती। जस्टिस जितेंद्र जैन और एएस चंदुरकर की पीठ ने यह फैसला सुनाया है। यह मामला 2007 में सामने आया और इस मामले में दो एकल न्यायाधीशों की पीठों के भिन्न विचार होने पर यह मामला हाई कोर्ट की खंडपीठ के सामने ट्रांसफर होकर आया था।
हाई कोर्ट से यह की गई थी मांग
हाई कोर्ट की खंडपीठ से इस बारे में निर्णय देने की मांग की गई थी कि क्या बेटी को अपने पिता की संपत्ति में पूर्ण या सीमित हक मिल सकता है। बेटी के पक्ष की ओर से वकीलों ने दलील दी थी कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत बेटी का भी संपत्ति में हक होना चाहिए। मृतक ने दो शादी की थी, दूसरी शादी से हुई बेटी के वकील ने हवाला दिया था कि उसकी मां को पूरी संपत्ति विरासत में मिली है। पिता की मौत 1956 से पहले हुई है, इसलिए इस अधिनियम के अनुसार पिता की संपत्ति पर दूसरी शादी से पैदा हुई बेटी का ही सारी संपत्ति पर अधिकार है। बता दें कि 1937 के अधिनियम में सिर्फ बेटों (pita ki property me bete ka hak)का उल्लेख है, बेटियों का नहीं। अब फिर से यह केस निर्णय के लिए एकल न्यायाधीश के पास भेजा गया है। इसमें अपील के बाकी गुण-दोष पर विचार होना है।
पारिवारिक विवाद का है मामला
संपत्ति का यह मामला पारिवारिक विवाद से सीधे तौर से जुड़ा है। मामले के अनुसार मृतक ने दो शादी की थी। पहली पत्नी से दो और दूसरी पत्नी से एक बेटी थी। 1930 में युवक की पहली पत्नी की मौत (Bombay High Court Decision In Property Case )हो गई थी। करीब 22 साल बाद 1952 में पति की मौत हो गई। मृतक की दूसरी पत्नी 1973 में मौत को प्राप्त हुई थी। इसके बाद यह विवाद उपजा। यहां पर यह भी गौर करने योग्य है कि मृतक से पहले पहली पत्नी से हुई एक बेटी का निधन 1949 में हो गया था।
दूसरी पत्नी ने लिखी थी वसीयत
पहली पत्नी की मौत के बाद उक्त शख्स की दूसरी पत्नी बेटी के पक्ष में 14 अगस्त 1956 को वसीयत (pati ki property me patni ka hak)छोड़कर गई थी। कुछ समय बाद संपत्ति का यह विवाद और बढ़ गया। इसके बाद पहली पत्नी से हुई दूसरी बेटी ने पिता की संपत्ति में आधा हिस्सा मांगा और कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस दावे को ट्रायल कोर्ट की ओर से खारिज कर दिया गया था। साथ ही कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की थी कि मृतक युवक की पहली पत्नी को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1937 के अनुसार पूरी प्रॉपर्टी (pati ki property me patni ka kitna hak hota hai) मिली है। बेशक इस अधिनियम में 1956 में संशोधन किया गया लेकिन इसके बाद भी पहली पत्नी का पति की संपत्ति पर पूरा हक है। क्योंकि पति की मृत्यु 1956 से पहले हो चुकी है। इसके बाद दूसरी पत्नी की बेटी ने हाई कोर्ट में केस दायर किया था।