मखाना जिसे फॉक्सनट के नाम से भी जाना जाता है इसकी खेती आमतौर कई जल निकायों जैसे तालाबों, भूमि के गड्ढों, शांत पानी वाली झीलों, दलदलों और पानी से भरी खाइयों में की जाती है इन क्षेत्रों में पूरे वर्षभर में लगातार पानी मिलता रहता है यह पौधा आद्र से उप-आर्द्र परिस्थितियों में पनपता है जिसमें इष्टतम हवा का तापमान 20°C से 35°C तक होता है वही 50-90% की सापेक्ष आर्द्रता और 100 से 250 सेमी के बीच वर्षा के विकास के लिए एकदम अनुकूल है।
किसान मखाने की खेती क्यों नहीं कर रहे हैं
मखाना की खेती बहुत अधिक म्हणत की जरूरत होती है और कटाई की प्रक्रिया में कोई मशीनीकरण नहीं होती है किसान को पानी के तालाब के पास में हाथ से कटाई करनी पड़ती है कटाई तो बस शुरुआत है, मुख्य कार्य तब शुरू होता है जब काटे गए बीजों को सफेद छोटी गेंद में डालने के लिए गर्म किया जाता है जिसे मखाना कहा जाता है, यह एक लंबी मैन्युअल प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया अधिक मेहनत लगती है लेकिन इसका मेहनताना अधिक मिलता है, मखाना की लगभग 90% खेती बिहार में होती है, जहां लगभग 38 हजार हेक्टेयर में खेती होती है और इसमें लगभग 60,000 किसान शामिल हैं। इसकी उपज 12-20 क्विंटल/हेक्टेयर होती है और 700-800 रुपये/किग्रा बिकती है।
मखाने की खेती
आपको बता दे, मखाना एक स्व परागणित पौधा है जो मुख्य रूप से बीज प्रसार के माध्यम से प्रजनन करता है, प्रति हेक्टेयर भूमि में बुआई के लिए औसतन 90-100 किलोग्राम बीज की जरूरत है बुआई का सही समय आमतौर पर दिसंबर होता है, मखाना के बीज पानी के अंदर अंकुरित होते है और पौधों के उचित घनत्व के लिए पौधे के लिए बीच में कुछ दूसरी होनी जरूरी है वही एक मीटर की दूरी के साथ में पतलापन भी किया जा सकता है।
इसके बाद में अप्रैल से जून तक पानी की सतह पर बड़े-बड़े गोल पत्ते तैरते हुए देखे जा सकते हैं, जो मखाना के पौधों के बढ़ने का संकेत देते हैं। फूल और फल मई और अक्टूबर-नवंबर के बीच आते हैं। फूल आने की अवस्था के दौरान शीघ्र निषेचन सफल स्व-परागण और फलों के विकास को सुनिश्चित करता है। फल फूल आने के 35-40 दिनों के भीतर पूर्ण परिपक्वता तक पहुँच जाते हैं।