Gaushala Subsidy Scheme: उत्तराखंड में बेसहारा गोवंश हमेशा से ही एक गंभीर समस्या रही है. जिससे सड़क दुर्घटनाओं और गोवंश की सुरक्षा दोनों पर संकट बना रहता है. इसे देखते हुए राज्य सरकार ने गौशालाओं के निर्माण और उनके संचालन के लिए नई नीति तैयार की है.
गौशालाओं के निर्माण की जिम्मेदारी अब जिलाधिकारी के पास
नई नीति के तहत प्रत्येक जिले में गौशालाओं के निर्माण और सुविधाओं की जिम्मेदारी जिलाधिकारी के नेतृत्व में गठित जिला स्तरीय समिति को सौंपी गई है. अब शासन को प्रस्ताव भेजने की जगह जिलाधिकारी सीधे प्रस्ताव को स्वीकृति दे सकेंगे. जिससे निर्माण कार्य में तेजी आएगी.
पशुपालन विभाग को मिला नोडल विभाग का दर्जा
पहले गौशालाओं के लिए तीन विभागों – अर्बन डेवेलपमेंट, पंचायती राज और पशुपालन – द्वारा बजट दिया जाता था. लेकिन अब इसे संपूर्ण रूप से पशुपालन विभाग को सौंप दिया गया है. विभाग बजट जारी करने से लेकर संचालन तक की सभी जिम्मेदारियों का निर्वहन करेगा.
प्रति पशु 80 रुपये की दर से भरण-पोषण राशि
पशुपालन सचिव बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने बताया कि पहले प्रति पशु केवल 5 रुपये की राशि दी जाती थी, जिसे अब बढ़ाकर 80 रुपये प्रति पशु कर दिया गया है. ताकि गौशालाओं में बेहतर देखभाल हो सके.
गौशाला निर्माण में 60 फीसदी सब्सिडी की व्यवस्था
नई नीति के अंतर्गत अगर कोई संस्था या व्यक्ति निजी तौर पर गौशाला बनवाना चाहता है, तो राज्य सरकार निर्माण लागत का 60% तक अनुदान देगी. इससे निजी भागीदारी को भी बढ़ावा मिलेगा और निराश्रित गोवंश को आश्रय देने का दायरा बढ़ेगा.
निर्माण लागत और मानकों को लेकर तय किए गए मूल्य
50 पशुओं की गौशाला के लिए 46 लाख रुपये और 100 पशुओं की गौशाला के लिए 66 लाख रुपये का प्रावधान किया गया है. निर्माण कार्य पशुपालन विभाग द्वारा तय मानकों के अनुसार किया जाएगा, ताकि सभी सुविधाएं मौजूद हों.
बड़ी लागत के प्रोजेक्ट्स को लेकर वित्तीय व्यवस्था
एक करोड़ रुपये तक के निर्माण कार्यों को जिलाधिकारी स्तर पर ही मंजूरी दी जा सकेगी. जबकि एक करोड़ से अधिक के प्रोजेक्ट्स को राज्य स्तर पर गठित समिति द्वारा स्वीकृत किया जाएगा. पांच करोड़ तक के प्रस्तावों की जांच जिला स्तरीय समिति करेगी.
कुक्कुट विकास नीति 2025 को भी मिली मंजूरी
राज्य सरकार ने ‘उत्तराखंड कुक्कुट विकास नीति 2025’ को मंजूरी दी है. जिसका उद्देश्य हर साल 15,444 लाख अंडों और 395 लाख किलो पोल्ट्री मीट की कमी को पूरा करना है. नीति का मकसद राज्य को पोल्ट्री उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना है.
पोल्ट्री क्षेत्र में आएगा 85 करोड़ का निजी निवेश
इस नई नीति के तहत कॉमर्शियल लेयर फार्म और बॉयलर पैरेंट फार्म स्थापित किए जाएंगे. नीति से 85 करोड़ रुपये तक का निजी निवेश आने की उम्मीद है. जबकि सरकार द्वारा 29.09 करोड़ रुपये का अनुदान प्रस्तावित किया गया है.
रोजगार के नए अवसर और राज्य को मिलेगा टैक्स लाभ
नीति के तहत 1,000 लोगों को प्रत्यक्ष और 3,500 लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा. सरकार का अनुमान है कि इससे राज्य को हर साल लगभग 50 लाख रुपये GST के रूप में मिलेंगे और पलायन पर भी लगाम लगेगी.
अंडा और मीट उत्पादन में आएगा भारी इजाफा
इस नीति के लागू होने के बाद हर साल करीब 32 करोड़ अंडों और 32 लाख टन मीट का उत्पादन होगा. जिससे राज्य को इनका आयात नहीं करना पड़ेगा. इससे राज्य की आत्मनिर्भरता और स्थानीय रोजगार को मजबूती मिलेगी.