Gold Reserve : भारत ने अपनी आर्थिक सुरक्षा को मजबूत करते हुए एक नया अध्याय लिखा है। आरबीआई (RBI) की रणनीति के तहत, देश का स्वर्ण भंडार पहली बार 100 अरब डॉलर के ऐतिहासिक स्तर को पार कर गया है… इस महत्वपूर्ण वृद्धि के परिणामस्वरूप, अब भारत के कुल विदेशी मुद्रा भंडार में सोने की हिस्सेदारी बढ़कर 14.7% हो गई है, जो वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच देश की वित्तीय स्थिरता को दर्शाती है।
भारत ने अपनी आर्थिक सुरक्षा को मजबूत करते हुए एक नया अध्याय लिखा है। आरबीआई (RBI) की रणनीति के तहत, देश का स्वर्ण भंडार पहली बार 100 अरब डॉलर के ऐतिहासिक स्तर को पार कर गया है, जो अब 105.53 अरब पर पहुंच गया है। हाल ही में 25.45 टन सोने की खरीद के बाद, भारत का कुल स्वर्ण भंडार बढ़कर 880.18 टन हो गया है, जिसका अनुमानित मूल्य 108.5 अरब है।
इस महत्वपूर्ण वृद्धि के परिणामस्वरूप, अब भारत के कुल विदेशी मुद्रा भंडार में सोने की हिस्सेदारी बढ़कर 14.7% हो गई है, जो वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच देश की वित्तीय स्थिरता को दर्शाती है।
डब्ल्यूजीसी (WGC) के अनुसार, भारत ने अपनी वित्तीय संप्रभुता और दीर्घकालिक स्थिरता को मजबूत करने की प्रतिबद्धता दर्शाई है। एचडीएफसी सिक्योरिटीज के पृथ्वी सिंह के मुताबिक, भारत का यह कदम डॉलर-निर्भर वैश्विक व्यवस्था में आत्मनिर्भर मुद्रा सुरक्षा तंत्र बनाने की ओर महत्वपूर्ण है। यह बढ़ती वैश्विक अनिश्चितताओं और जोखिमों के बीच देश के लिए एक “फाइनेंशियल शील्ड” के रूप में कार्य करता है, जो आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
अल्पकालिक बचाव नहीं दीर्घकालिक सुरक्षा की नीति-
डब्ल्यूजीसी (WGC) के अनुसार, भारत (आरबीआई) कई वर्षों से केंद्रीय बैंकों (central bank) में सोना खरीदने में आगे रहा है। यह डॉलर पर निर्भरता कम करने और विदेशी मुद्रा भंडार में विविधता लाने की रणनीति है। यह दर्शाता है कि भारत की प्राथमिकता अल्पकालिक अस्थिरता से बचाव नहीं, बल्कि दीर्घकालिक आर्थिक सुरक्षा और एक टिकाऊ मौद्रिक ढांचा बनाना है।
इसलिए बढ़ रहा पीली धातु का महत्व-
वैश्विक वित्तीय व्यवस्था इस समय संक्रमण के दौर में है। रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन-अमेरिका प्रतिस्पर्धा, पश्चिम एशिया संकट और बदलते ऊर्जा-व्यापार समीकरणों ने अंतरराष्ट्रीय बाजारों (intrnational markets) में अस्थिरता बढ़ाई है। ऐसे में सोना एक सार्वभौमिक सुरक्षित संपत्ति के रूप में फिर केंद्र में आया है। भारत की रणनीति अब पारंपरिक डॉलर-सेंट्रिक रिजर्व मॉडल (Dollar-Centric Reserve Model) के बजाय मल्टी एसेट रिजर्व फ्रेमवर्क की ओर बढ़ रही है।
– आईआईएम बंगलूरू के प्रोफेसर नितिन वर्मा के अनुसार, भारत वैश्विक अस्थिरता के बीच बहु-परत वित्तीय सुरक्षा संरचना बना रहा है। नीतिगत स्तर पर यह कदम विदेशी झटकों से बचाव और मजबूत मुद्रा संप्रभुता की ओर निर्णायक है।
– निवेशकों के लिए संकेत: आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि आम निवेशकों के लिए भी सोना दीर्घकालिक संपत्ति आवंटन में 5-10 फीसदी का स्थिर सुरक्षा कवच प्रदान कर सकता है।
इसलिए बढ़ रहे दाम-
सोने में पिछले दो साल में लगभग लगातार तेजी देखी जा रही है। मुख्य वजह हैं…
– सेंट्रल बैंकों की भारी खरीद।
– जियो-पॉलिटिकल तनाव।
– अमेरिकी महंगाई और ब्याज दर को लेकर जारी अनिश्चितता।
– डॉलर इंडेक्स में उतार-चढ़ाव।
डब्ल्यूजीसी (WGC) के अनुसार, कई उभरती अर्थव्यवस्थाएं अपना सोना भंडार बढ़ा रही हैं। यह रुझान वैश्विक अस्थिरता (global instability) के दौरान देखा जाता है, क्योंकि देश अपने धन को सोने जैसी स्थायी मूल्य वाली संपत्ति में रखते हैं, जो मुश्किल समय में सुरक्षा प्रदान करती है। सोना हमेशा अपनी कीमत बनाए रखता है।
