केवल 90 दिन में किसानों को छप्परफाड़ पैसा कमा कर देगी यह फसल, जाने क्या है इसका नाम। मकोय एक औषधीय पौधा है, जिसका वैज्ञानिक नाम Solanum nigrum है। इसे भारत में विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे – मकोय, भटकटैया, काकमाची, या काली मकोय। यह पौधा अपनी औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेदिक, यूनानी और होम्योपैथिक दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है। आइए इसकी खेती के बारे में जानते है।
मकोय की खेती के लिए आवश्यक जलवायु और मिट्टी
यह गर्म और समशीतोष्ण जलवायु में अच्छी तरह से विकसित होता है। इसे अधिक ठंडे क्षेत्रों में ग्रीनहाउस के माध्यम से भी उगाया जा सकता है। अच्छी जल निकासी वाली दोमट या बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH स्तर 6.0-7.5 के बीच होना चाहिए। जैविक खाद या गोबर खाद डालकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जा सकती है।
मकोय की खेती कैसे करे
मकोय की बुवाई वर्षा ऋतु में जून-जुलाई या गर्मी में फरवरी-मार्च में की जाती है। इसे सीधे खेत में या नर्सरी में पौध तैयार कर खेत में लगाया जा सकता है। प्रति हेक्टेयर 3-4 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीजों को बुवाई से पहले 12 घंटे तक पानी में भिगोकर रखना चाहिए। गर्मियों में 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
वर्षा के मौसम में कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। फसल की सिंचाई जलभराव से बचाकर करें। बुवाई के 70-90 दिन बाद पौधे में फल और पत्तियां तोड़ी जा सकती हैं। फलों को हरा या पकने के बाद तोड़ा जाता है। औषधीय उपयोग के लिए पत्तियों और फलों को सुखाकर बेचा जाता है। प्रति हेक्टेयर 20-30 क्विंटल हरी पत्तियां और 8-10 क्विंटल सूखी सामग्री प्राप्त हो सकती है।
मकोय के औषधीय फायदे
मकोय में कई औषधीय गुण पाए जाते है जैसे लीवर की बीमारियों में लाभकारी, बुखार और पेट दर्द में कारगर, त्वचा रोगों के उपचार में, एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर।
मकोय से कमाई
मकोय की मांग आयुर्वेदिक और दवा कंपनियों में काफी अधिक है। इसकी कीमत 100-150 रुपये प्रति किलोग्राम सूखी सामग्री के लिए मिल सकती है। कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली औषधीय फसल है।