कम फीस और ट्रांसफर सुविधा चाहिए या इंटरनेशनल लेवल की पढ़ाई और आधुनिक सुविधाएं? KVS vs DPS की इस सीधी तुलना में जानिए कौन-सा स्कूल है आपके बच्चे के करियर के लिए बेस्ट विकल्प – पढ़ें पूरी खबर और लें स्मार्ट फैसला!
KVS vs DPS के बीच पेरेंट्स की दुविधा आम बात है, खासकर तब जब उन्हें अपने बच्चे के लिए सही स्कूल चुनना हो। भारत में शिक्षा को लेकर बढ़ती जागरूकता के बीच पेरेंट्स अब सरकारी और प्राइवेट स्कूलों की खूबियों और खामियों को समझकर ही फैसला लेना चाहते हैं। केंद्रीय विद्यालय संगठन (KVS) और दिल्ली पब्लिक स्कूल सोसाइटी (DPS) देश के दो सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान हैं, लेकिन दोनों का ढांचा, उद्देश्य, फीस स्ट्रक्चर और प्रवेश प्रक्रिया एक-दूसरे से बिल्कुल अलग है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आपके बच्चे के लिए कौन-सा विकल्प बेहतर रहेगा।
केवीएस और डीपीएस की एडमिशन प्रक्रिया में क्या अंतर है
केंद्रीय विद्यालय (KVS) में कक्षा 1 के एडमिशन के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करना होता है, जिसके बाद लॉटरी सिस्टम के माध्यम से चयन होता है। कक्षा 2 से 8 तक एडमिशन ऑफलाइन होता है और यह खाली सीटों और प्राथमिकता के आधार पर होता है। कक्षा 9 में प्रवेश टेस्ट के माध्यम से जबकि कक्षा 11 में 10वीं के अंकों के आधार पर होता है। यहां केंद्रीय कर्मचारियों, सैन्य और अर्धसैनिक बलों में कार्यरत लोगों के बच्चों को प्राथमिकता मिलती है।
इसके विपरीत, दिल्ली पब्लिक स्कूल (DPS) में नर्सरी या कक्षा 1 से एडमिशन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। अधिकतर ब्रांच में आवेदन फॉर्म भरने के बाद इंटरव्यू या टेस्ट लिया जाता है। हर डीपीएस ब्रांच की अपनी अलग प्रवेश प्रक्रिया होती है। यहां किसी तरह की सरकारी प्राथमिकता नहीं होती, लेकिन मेरिट, भाई-बहन का पहले से स्कूल में होना या कभी-कभी डोनेशन के आधार पर एडमिशन मिल सकता है।
पढ़ाई और सुविधाओं में कौन बेहतर है?
केंद्रीय विद्यालय की सबसे बड़ी खासियत इसकी कम फीस और समरूपता है। यहां की पढ़ाई NCERT और CBSE सिलेबस पर आधारित होती है, जिससे देशभर में कहीं भी एक जैसी शिक्षा मिलती है। ट्रांसफर की स्थिति में छात्रों को किसी अन्य KVS में आसानी से एडमिशन मिल जाता है। साथ ही हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर ध्यान दिया जाता है। खेलकूद और सांस्कृतिक गतिविधियों पर भी फोकस होता है।
वहीं डीपीएस अपने मॉडर्न इंफ्रास्ट्रक्चर, स्मार्ट क्लास, इंटरनेशनल प्रोग्राम्स और कम स्टूडेंट-टीचर रेशियो के लिए जाना जाता है। यहां अंग्रेजी भाषा पर विशेष जोर दिया जाता है, जिससे बच्चे इंटरनेशनल लेवल की प्रतियोगी परीक्षाओं की बेहतर तैयारी कर पाते हैं। DPS का ब्रांड, उसका एक्सपोजर और उच्च शिक्षा में प्लेसमेंट के बेहतर अवसर इसे कई अभिभावकों की पहली पसंद बनाते हैं।
कमियाँ क्या हैं दोनों स्कूलों की?
केवीएस में एडमिशन सीटों की संख्या सीमित होने के कारण आम लोगों के लिए प्रवेश पाना कठिन हो जाता है। कई स्कूलों में स्मार्ट क्लास या अत्याधुनिक लैब की सुविधा नहीं होती। वहीं शिक्षक गुणवत्ता में भी कभी-कभी अंतर देखा गया है। लॉटरी सिस्टम से एडमिशन अनिश्चित होता है, जिससे पेरेंट्स को असमंजस होता है।
डीपीएस की सबसे बड़ी चुनौती उसकी ऊंची फीस है। ₹5,000 से ₹15,000 प्रति माह की फीस मिडिल क्लास के लिए बोझिल साबित हो सकती है। इसके अलावा हर DPS ब्रांच की गुणवत्ता एक जैसी नहीं होती, जैसे कि DPS दिल्ली बनाम छोटे शहर के DPS में अंतर। साथ ही, ट्रांसफर के बाद दूसरी ब्रांच में एडमिशन की कोई गारंटी नहीं होती और हिंदी भाषा पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया जाता है।
किसे चुनें – KVS या DPS?
अगर आप केंद्रीय कर्मचारी हैं या कम बजट में अच्छी शिक्षा चाहते हैं तो KVS आपके लिए बेहतरीन विकल्प हो सकता है। इसके अलावा, अगर ट्रांसफर की संभावना है और आप चाहते हैं कि आपके बच्चे को हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में मजबूत नींव मिले, तो भी KVS उपयुक्त रहेगा।
दूसरी ओर, अगर आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत है और आप चाहते हैं कि बच्चा इंटरनेशनल स्टैंडर्ड की पढ़ाई करे, आधुनिक सुविधाएं मिले, और भविष्य में विदेश में पढ़ाई या प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बेहतर एक्सपोजर मिले, तो DPS बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।