Liquor Shopkeeper Earning: जब भी कोई व्यक्ति शराब की दुकान से दो हजार रुपये की बोतल खरीदता है, तो अक्सर उसके मन में यह सवाल आता है कि इस बोतल की असल कीमत कितनी है और दुकानदार को इसमें से कितना मुनाफा होता है। इस आर्टिकल में हम आपको विस्तार से बताएंगे कि शराब की कीमत कैसे तय होती है और सरकार इस पर कितना टैक्स लेती है।
जीएसटी प्रणाली में शराब शामिल क्यों नहीं?
भारत में अधिकतर वस्तुओं और सेवाओं पर गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) लागू होता है, लेकिन शराब को इस टैक्स प्रणाली से बाहर रखा गया है। इसकी वजह यह है कि शराब से राज्यों को भारी मात्रा में रेवेन्यू प्राप्त होता है और हर राज्य अपनी नीतियों के आधार पर शराब पर टैक्स लगाता है। इस कारण प्रत्येक राज्य में शराब की कीमतें अलग-अलग होती हैं।
शराब पर लगने वाले टैक्स के प्रकार
शराब की बोतल पर मुख्य रूप से एक्साइज ड्यूटी और वैट (Value Added Tax) लगाया जाता है। इन दोनों टैक्सों की दरें राज्य सरकारों द्वारा तय की जाती हैं, जिससे हर राज्य में शराब की कीमत अलग होती है।
दो हजार रुपये की शराब की बोतल पर टैक्स का गणित
अगर किसी शराब की बोतल की कीमत 2000 रुपये है, तो उसमें 30 से 35 प्रतिशत तक टैक्स लगता है। यानी लगभग 600 से 700 रुपये सरकार के खाते में चला जाता है। इसके अलावा, ट्रांसपोर्टेशन, स्टोरेज और अन्य लागतें भी इस कीमत में शामिल होती हैं।
दुकानदार को कितनी कमाई होती है?
शराब की बिक्री से दुकानदार को मिलने वाला लाभ राज्य और शराब के ब्रांड पर निर्भर करता है। आमतौर पर:
- विदेशी शराब पर दुकानदार का मुनाफा कम होता है, जबकि देसी शराब पर थोड़ी ज्यादा कमाई होती है।
- कई राज्यों में शराब के विक्रेताओं को प्रति बोतल एक निश्चित कमीशन मिलता है, जो 5% से 10% तक हो सकता है।
- यानी यदि कोई दुकानदार 2000 रुपये की बोतल बेचता है, तो उसे लगभग 100 से 200 रुपये तक का लाभ हो सकता है।
हर राज्य में अलग-अलग टैक्स प्रणाली
भारत में शराब पर टैक्स की दरें अलग-अलग राज्यों में भिन्न होती हैं। कुछ प्रमुख राज्यों में शराब पर टैक्स की कन्डिशन:
- उत्तर प्रदेश: शराब पर लगभग 35% से अधिक टैक्स लगाया जाता है।
- दिल्ली: दिल्ली में भी शराब पर 30-40% तक का टैक्स लगता है।
- महाराष्ट्र: यहां शराब पर 50% तक टैक्स लगाया जाता है, जो देश में सबसे अधिक है।
- पश्चिम बंगाल: इस राज्य में 30-40% के बीच टैक्स वसूला जाता है।
- तमिलनाडु: तमिलनाडु में सरकार खुद शराब की बिक्री करती है, जिससे यहां टैक्स की दरें ज्यादा होती हैं।
विदेशी और देसी शराब पर अलग टैक्स
देसी और विदेशी शराब पर लगने वाले टैक्स में अंतर होता है।
- देसी शराब: इस पर राज्यों में अपेक्षाकृत कम टैक्स लगता है। यह मध्यम और निम्न वर्ग के उपभोक्ताओं के लिए सुलभ होती है।
- विदेशी शराब: इसमें इंपोर्ट ड्यूटी के साथ एक्स्ट्रा टैक्स भी लगाया जाता है, जिससे इसकी कीमत ज्यादा होती है।
राज्यों के लिए बड़ा राजस्व सोर्स
शराब का कारोबार राज्यों के लिए सबसे बड़े राजस्व स्रोतों में से एक है। कई राज्यों में सरकार को सालाना हजारों करोड़ रुपये की आय केवल शराब की बिक्री से होती है।