ManiKarnika Snan Date 2024: सनातन धर्म में मणिकर्णिका घाट का बहुत ही विशेष महत्व है। मान्यता है कि मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। तो आज इस खबर में जानेंगे कि मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने की शुभ तिथि कब है।
ManiKarnika Snan Date 2024: वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने का अपना महत्व होता है। मान्यता है कि जो जातक इस दिन मणिकर्णिका घाट पर स्नान करते हैं, उन्हें सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही जन्म-मृत्यु के चक्र से भी मुक्ति मिल जाती है। पंचांग के अनुसार, इस साल मणिकर्णिका स्नान 15 नवंबर 2024 दिन शुक्रवार को है। इस दिन श्रद्धालु वैकुण्ठ चौदस पर तीसरे पहर में स्नान करते हैं। कार्तिक माह में मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने के लिए भक्तों का ताता लगा रहता है।
क्या है मणिकर्णिका स्नान का महत्व (ManiKarnika Snan Mahatv)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मणिकर्णिका घाट पर देवी सती के कान के आभूषण गिरे थे। इसलिए यह स्थान सनातन धर्म को मानने वाले लोगों के लिए पूजनीय है। मान्यता है कि जो जातक कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मणिकर्णिका घाट पर स्नान करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही उसे जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही भगवान शिव का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मणिकर्णिका घाट का इतिहास (ManiKarnika Ghat History)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब माता सती अपने पिता के व्यवहार से नाराज हो गई थी तो अपने आप को अग्नि में समर्पित कर दिया था। उस समय स्वयं भगवान शिव माता सती के शरीर को कैलास लेकर जा रहे थे। जब भगवान शिव माता सती के शरीर को कैलाश लेकर जा रहे थे तो माता सती के शरीर का एक-एक हिस्सा पृथ्वी पर गिर रहा था। मान्यता है कि जिस स्थान पर माता सती के शरीर का अंग गिरा हुआ है वहां शक्ति पीठ की स्थापना की गई हैं। मान्यता है कि पृथ्वी कुल 51 शक्ति पीठ हैं। माता सती के शरीर का एक हिस्सा यानी कान का कुंडल वाराणसी के एक घाट पर गिर गया था। तब से उस घाट को मणिकर्णिका घाट के नाम से जाना जाता है। जिस स्थान पर कुंडल गिरा था वहां पर एक कुंड बन गया था। इसी कुंड में लोग स्नान करते हैं।
जानें क्यों अलग है मणिकर्णिका घाट (ManiKarnika Ghat)
बता दें कि मणिकर्णिका घाट में ऐसी दो विचित्र बाते हैं। ये दो बातें ही दूसरे श्मशान घाट से अलग बनाती है। बता दें कि मणिकर्णिका घाट में फाल्गुन माह की एकादशी तिथि के दिन चिता की राख से होली खेली जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के रूप विश्वनाथ बाबा अपनी भार्या पार्वती जी का गवना कराकर अपने देश लौटे थे। माता पार्वती की डोली चलती है तो इनके पीछे-पीछे अघोरी बाबा नाच गान करते हुए स्वागत करते हैं। तब से लेकर यह प्रथा चली आ रही है।