साझा प्रॉपर्टी के विवाद में सही समाधान सिविल कोर्ट में याचिका दायर करना है। सब-रजिस्ट्रार और पुलिस आपके विवाद को सुलझाने में सीमित भूमिका निभा सकते हैं। प्रॉपर्टी पर स्टे ऑर्डर और उचित विभाजन के लिए कानूनी प्रक्रियाओं को अपनाएं।
जॉइंट ओनरशिप, जिसे साझा मालिकाना हक भी कहा जाता है, प्रॉपर्टी का एक ऐसा प्रचलन है जिसमें किसी प्रॉपर्टी के मालिकाना अधिकार एक से अधिक व्यक्तियों के पास होते हैं। आज प्रॉपर्टी की कीमतें इतनी बढ़ चुकी हैं कि कई लोग मिलकर प्रॉपर्टी खरीदते हैं। जॉइंट ओनर के पास प्रॉपर्टी पर कब्जे का अधिकार, उसका इस्तेमाल करने का अधिकार और उसे बेचने का अधिकार होता है। लेकिन जब किसी हिस्सेदार द्वारा पूरी प्रॉपर्टी को बेचने की कोशिश की जाती है, तो विवाद उत्पन्न हो सकता है। ऐसे मामलों में कानूनी प्रक्रियाओं की जानकारी होना बेहद जरूरी है।
सब-रजिस्ट्रार के पास शिकायत करना
कई लोग प्रॉपर्टी विवाद में सबसे पहले सब-रजिस्ट्रार के पास शिकायत दर्ज करवाने पहुंचते हैं। सब-रजिस्ट्रार का मुख्य कार्य रजिस्ट्री करना और सरकार के लिए राजस्व उत्पन्न करना है। वह विवादों का निपटारा करने के लिए अधिकृत नहीं होता। यदि आप प्रॉपर्टी विवाद में फंसे हैं, तो सब-रजिस्ट्रार से किसी भी प्रकार की कानूनी मदद की उम्मीद करना व्यर्थ होगा।
पुलिस थाने का विकल्प
यदि सब-रजिस्ट्रार मदद नहीं कर सकता, तो लोग आमतौर पर पुलिस के पास जाते हैं। पुलिस आपके हिस्सेदार को समझाने की कोशिश कर सकती है, लेकिन वह प्रॉपर्टी बेचने की प्रक्रिया को रोकने का अधिकार नहीं रखती। पुलिस का हस्तक्षेप तभी संभव है जब विवाद हिंसा या झगड़े का रूप ले ले। अन्यथा, इस मामले में पुलिस भी सीमित भूमिका निभाती है।
सिविल कोर्ट का सहारा लें
यदि आप प्रॉपर्टी विवाद से जूझ रहे हैं और इसे हल करना चाहते हैं, तो सबसे उचित कदम सिविल कोर्ट में याचिका दायर करना है।
- सिविल केस दर्ज करना: आपको कोर्ट में एक याचिका के माध्यम से प्रॉपर्टी के विभाजन का अनुरोध करना चाहिए।
- स्टे ऑर्डर प्राप्त करना: यदि आपको लगता है कि आपका हिस्सेदार जल्द ही प्रॉपर्टी बेच सकता है, तो स्टे के लिए आवेदन करना सही रहेगा। स्टे एप्लीकेशन पर तुरंत सुनवाई होती है और इससे प्रॉपर्टी पर रोक लगाई जा सकती है।
- कोर्ट की प्रक्रिया: कोर्ट दोनों पक्षों को बुलाकर सुनवाई करेगी। इसमें सब-रजिस्ट्रार को भी पक्षकार बनाया जाएगा। सभी तथ्यों और दस्तावेजों की समीक्षा के बाद कोर्ट निर्णय करेगा।