Property Rights: संपत्ति को लेकर परिवारों में विवाद आम हैं. खासकर जब बात पिता की संपत्ति पर बेटों और बेटियों के अधिकार की हो. लेकिन भारत का कानून और सुप्रीम कोर्ट दोनों इस मामले में पूरी तरह स्पष्ट हैं. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में साफ किया है कि पिता की स्व-अर्जित संपत्ति पर बेटे का कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता. जब तक कि उसे कानूनी रूप से वारिस न घोषित किया गया हो.
स्व-अर्जित और पैतृक संपत्ति में फर्क क्या है?
भारतीय कानून संपत्ति को दो श्रेणियों में बांटता है – स्व-अर्जित और पैतृक.
- स्व-अर्जित संपत्ति वह होती है जो किसी व्यक्ति ने अपनी कमाई, वेतन या व्यापार से अर्जित की हो.
- पैतृक संपत्ति वह होती है जो चार पीढ़ियों से चली आ रही हो, यानी जो दादा-परदादा से उत्तराधिकार में मिली हो.
स्व-अर्जित संपत्ति पर उसका अर्जन करने वाला व्यक्ति ही पूर्ण स्वामी होता है और वह इसे अपनी मर्जी से किसी को भी दे सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा स्व-अर्जित संपत्ति पर?
सुप्रीम कोर्ट ने ‘अंगदी चंद्रन्ना बनाम शंकर एवं अन्य’ मामले (Civil Appeal No. 5401/2025) में स्पष्ट कहा है कि स्व-अर्जित संपत्ति पर बेटा तब तक दावा नहीं कर सकता जब तक पिता उसे वसीयत या अन्य तरीके से सौंप न दें. न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने इस फैसले के जरिए पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति के बीच कानूनी अंतर को स्पष्ट किया.
मिताक्षरा कानून का क्या है महत्व?
भारत में अधिकांश हिंदू परिवारों में संपत्ति का बंटवारा मिताक्षरा कानून के अंतर्गत होता है. पैतृक संपत्ति पर बेटों को जन्म से अधिकार प्राप्त होता है. लेकिन स्व-अर्जित संपत्ति पर पिता का पूर्ण नियंत्रण होता है और वह चाहे तो इसे किसी को भी दे सकते हैं या बिल्कुल किसी को न दें.
वसीयत बनाना है जरूरी
यदि पिता ने अपनी स्व-अर्जित संपत्ति पर कोई वसीयत (Will) बना रखी है, तो संपत्ति उसी के अनुसार वितरित होगी. यदि वसीयत नहीं है, तो मामला हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अंतर्गत आता है, जो अलग-अलग संपत्ति श्रेणियों के लिए अलग नियम तय करता है.
बेटों को कब और कैसे मिल सकती है संपत्ति?
यदि संपत्ति स्व-अर्जित है, तो बेटा उस पर तभी अधिकार प्राप्त करता है जब पिता उसे वसीयत या गिफ्ट डीड द्वारा सौंपते हैं. पिता की मृत्यु के बाद यदि वसीयत नहीं है, तो उत्तराधिकार अधिनियम लागू होता है. इसके विपरीत पैतृक संपत्ति में सभी उत्तराधिकारियों का जन्म से ही बराबर का हिस्सा होता है. जिसमें बेटियों को भी बराबरी का अधिकार प्राप्त है.
संपत्ति विवाद से बचने के लिए जागरूकता जरूरी
भारत में संपत्ति विवादों का एक बड़ा कारण जानकारी की कमी है. लोगों को चाहिए कि वे स्व-अर्जित और पैतृक संपत्ति के बीच के फर्क को समझें. कानूनी सलाह और सही दस्तावेज़ीकरण से भविष्य के विवादों से बचा जा सकता है.