Railway Unique Station: भारत में रेल यात्रा आम आदमी के लिए सबसे किफायती और भरोसेमंद सफर का माध्यम मानी जाती है. भारतीय रेलवे, जो दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है, रोज़ाना लाखों यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाता है. लेकिन क्या आपने कभी ऐसा रेलवे स्टेशन सुना है, जहां लोग रोज टिकट तो खरीदते हैं, लेकिन कोई यात्रा पर नहीं निकलता?
जी हां उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जोन में दयालपुर रेलवे स्टेशन की यही सच्चाई है. यह स्टेशन देश के सबसे अनोखे और हैरान करने वाले रेलवे स्टेशनों में से एक बन गया है. जहां की कहानी भारतीय रेलवे की कार्यप्रणाली और आमजन की जिद दोनों को दर्शाती है.
रेल यात्रा देश की जीवन रेखा
भारत में ट्रेनें केवल सफर का साधन नहीं. बल्कि जीवन रेखा हैं. गांवों से शहरों तक, स्टूडेंट्स से लेकर किसान और मजदूर तक हर वर्ग के लोग रेलवे पर निर्भर हैं. देश में रोजाना हजारों ट्रेनें चलती हैं और कई नए स्टेशन जुड़ते जा रहे हैं. पर वहीं दूसरी ओर कुछ स्टेशन ऐसे भी हैं, जो यात्रियों के अभाव या सुविधाओं की कमी के चलते उपेक्षित रह जाते हैं.
दयालपुर रेलवे स्टेशन
उत्तर प्रदेश में स्थित दयालपुर स्टेशन, भारतीय रेलवे का सबसे अनोखा स्टेशन बन गया है. यहां पर रोजाना टिकट बेचे जाते हैं, लेकिन कोई यात्री ट्रेन में चढ़ता नहीं. यह बात जितनी हैरान करने वाली है, उतनी ही वास्तविक भी. रेलवे अधिकारियों के लिए यह एक अजीब स्थिति है और स्थानीय लोगों के लिए यह संघर्ष का प्रतीक बन गया है.
1954 में हुआ था उद्घाटन
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दयालपुर स्टेशन की शुरुआत 1954 में हुई थी. इस ऐतिहासिक स्थल का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था. उस समय यह स्टेशन काफी सक्रिय था और कई ट्रेनें यहां रुकती थीं. लेकिन जैसे-जैसे समय बीता इस स्टेशन पर यात्रियों की संख्या घटती चली गई.
कम यात्री संख्या बनी बंदी की वजह
भारतीय रेलवे के नियमों के अनुसार, यदि किसी स्टेशन पर लगातार 50 से कम टिकट बिकें, तो उसे घाटे का सौदा मानते हुए बंद कर दिया जाता है. यही हुआ दयालपुर स्टेशन के साथ भी. साल 2006 में इसे पूरी तरह से बंद कर दिया गया. क्योंकि वहां से यात्रियों का आना-जाना लगभग बंद हो गया था.
जनता की जिद ने दोबारा खोला स्टेशन
2006 में बंद होने के बाद, स्थानीय लोगों ने स्टेशन को दोबारा शुरू करने की मांग की. वर्षों की मांग और संघर्ष के बाद, 2020 में रेलवे ने स्टेशन को फिर से चालू किया. लेकिन एक शर्त के साथ—यहां केवल एक ट्रेन ही रुकेगी. सुविधा भले ही कम हो. लेकिन लोगों का उद्देश्य था कि स्टेशन की पहचान बची रहे.
हर दिन बिकते हैं टिकट
सबसे दिलचस्प बात यह है कि अब भी दयालपुर स्टेशन से लोग टिकट खरीदते हैं पर यात्रा नहीं करते. इसका कारण है कि स्थानीय लोग चाहते हैं कि रेलवे यह समझे कि स्टेशन सक्रिय है. ताकि उसे दोबारा बंद न किया जाए. यहां रोजाना लगभग 700 रुपये तक के टिकट बिक जाते हैं. लेकिन ट्रेन में कोई यात्री नहीं चढ़ता.
एकमात्र ट्रेन है उम्मीद की किरण
फिलहाल, दयालपुर स्टेशन पर केवल एक ट्रेन का स्टॉपेज है. स्थानीय लोग चाहते हैं कि आने वाले समय में ट्रेनें बढ़ाई जाएं और यहां मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाएं. स्टेशन पर अभी भी कोई बड़ा प्लेटफॉर्म, प्रतीक्षालय या टिकट काउंटर सुविधा नहीं है.
स्टेशन को बचाने की जिद बनी आंदोलन
यह मामला सिर्फ एक स्टेशन की सुविधा का नहीं, बल्कि स्थानीय जनसहभागिता और संघर्ष की कहानी है. ग्रामीणों ने यह ठान लिया कि अगर स्टेशन चालू रहेगा तो भविष्य में सरकार सुविधाएं भी बढ़ाएगी. इसलिए लोग खुद टिकट खरीदकर रेलवे को यह दिखाना चाहते हैं कि स्टेशन का प्रयोजन अभी भी है.
क्या यह मॉडल बन सकता है देश के अन्य उपेक्षित स्टेशनों के लिए?
दयालपुर स्टेशन की कहानी एक प्रेरणा है कि अगर जनता जागरूक हो, तो सरकार और व्यवस्था को भी जवाब देना पड़ता है. इस अनोखे मॉडल को दूसरे बंद या उपेक्षित रेलवे स्टेशनों के लिए भी अपनाया जा सकता है. जहां स्थानीय लोग मिलकर स्टेशन को सक्रिय बनाए रखने में भूमिका निभा सकते हैं.