गोबर ,गुड़ ,गोमूत्र बेसन से प्राकृतिक खेती कर रहे है किसान ,जानिए कैसे

इंदौर के आसपास पारंपरिक खेती के साथ प्राकृतिक खेती का भी चलन बढ़ रहा है कटाई और खेत की जुताई के बाद बारिश का इंतजार करना और नमी के बाद बीज बोना फसल को खराब होने के बचाने के लिए कीटनाशक डालना यह खेती का पारंपरिक तरीका है
इस दौरान कई रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है जो फसल के साथ मिट्टी को नुकसान पहुंचता है अब किसान इसमें बदलाव कर रहे है इस संबंध में जीवामृत तैयार किया गया है इसका इस्तेमाल खेतों में नमी आने और बुवाई के बाद भी कर सकते है
जीवामृत को गुड़ ,गोमूत्र बेसन और मिटटी से तैयार किया जाता है इसके अलावा नीम की पत्ती और अन्य चीजों को मिलाकर कीटनाशक भी तैयार किए जा रहे है
ऐसे तैयार होता जीवामृत
10 KG गोबर 10 लीटर गोमूत्र ,1 किलो गुड ,1 किलो बेसन आधा किलो मिटटी को मिलाकर सात दिन रखा जाता है इस मिश्रण को हर घंटे घड़ी की दिशा में घुमाया जाता है ताकि ऑक्सीजन का फ्लो बना रहे घड़ी की उलटी दिशा में घूमने से ऑक्सीजन का फ्लो कम रहता है 7 दिन बाद मिश्रण को बारिश के बाद खेतों में बढ़ी नमी या बीज बोन के बाद डाला जाता है जो की उच्च कोटि की फसल तैयार करने में लाभकारी साबित होगा इसके अलावा नीम काढ़ा और मीठी नीम से तैयार प्राकृतिक कीटनाशक का इस्तेमाल भी बढ़ रहा है
किसान दीपक दुबे ने बताया की अब तक अलग -अलग गांव से हमने ऐसे 10 से ज्यादा कृषक दोस्त तैयार किए है जो अपने खेतों में प्राकृतिक खेती कर रहे है यह किसान अभी 1 -1 बीघा में प्राकृतिक खेती कर रहे है शुरुआत में इसका फायदा नहीं मिलेगा लेकिन 3 -4 साल बाद जमीन उपजाऊ बन जाएगी
किसान जगदीश रावलिया ने बताया की हमारे पास 25 बीघा जमीन है शुरुआत में एक बीघा में प्राकृतिक खेती तैयार करेंगे हम मक्का सोयाबीन आलू प्याज और गेंहू की खेती करते है आमतौर पर 95 दिन में फसल तैयार हो जाती है सोयाबीन 4 से 7 हजार रूपये क्विंटल में बिकती है लेकिन प्राकृतिक बीज की कीमत 8 से 10 हजार रूपये तक रहेगी