मसूर की मिश्रित खेती से होगी बंपर पैदावार ,बुवाई के लिए करें इस विधि का इस्तेमाल

 
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आज इंडिया का कृषि क्षेत्र काफी तरक्की कर रहा है खेतों में चुनौतियां तो है लेकिन नुकसान के मुकाबले फायदा ज्यादा है तभी तो दूसरे देशों से कृषि उत्पाद आयत करने के मुकाबले बागवानी से लेकर दलहन उत्पादन के क्षेत्र में किसानों को आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है हर सीजन में किसानों को कम से कम दलहनी फसल लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है इसके लिए बीजों से लेकर खाद सिंचाई और खेती अलग -अलग टेक्निको को अपनाने के लिए सब्सिडी भी दी जाती है। 

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अब अगर खरीफ सीजन में मौसम के खराब रुख के कारण ज्यादातर किसान दलों की बुवाई ही नहीं कर पाए लेकिन रबी सीजन की प्रमुख दलहनी फसल मसूर की मिश्रित खेती करके किसान पिछले सीजन के नुकसान की भरपाई भी कर सकते है इसके लिए सरसों और जौ की फसल के साथ मसूर की बुवाई कर सकते है इस तरह मसूर की खेती के लिए अलग से खाद -पानी का खर्च नहीं करना होगा साथ ही एक ही खेत से अलग -अलग उत्पादन लेकर डबल फायदा भी कमा सकते है। 
मसूर एक प्रमुख दलहनी फसल है इसलिए इसकी बुवाई से पहले मिट्टी की जांच और खेत की तैयार जरूर कर लें 
रबी सीजन में ही मसूर की खेती की जाती है इससे अधिक पैदावार के लिए 15 अक्टूबर से लेकर 15 नवंबर तक बुवाई कर देनी चाहिए इसकी खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है किसान चाहे तो लाल लैटेराइट मिट्टी में भी इसकी अच्छी पैदावार ले सकते है इसकी बुवाई के लिए मिट्टी की जैविक विधि से तैयार करना चाहिए मिट्टी को जांच के आधार पर ही खाद -उर्वरकों का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है 
मिट्टी और जलवायु के मसूर के उत्पादन में अहम रोल है इसलिए मिट्टी का PH मान 5 .8 से 7 .5 के बीच होना चाहिए। 
बीजों के अंकुरण से लेकर पौधों के विकास और फसल की जच्चगी पैदावार के लिए सर्द जलवायु या 18 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तक टेम्प्रेचर होना चाहिए। 

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मसूर की खेती करने के लिए 30 से 35 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर लग जाता है इसकी देरी से बुवाई के लिए 40 से 60 किलोग्राम उन्नत किस्म के बीजों का उपयोग कर सकते है बुवाई से पहले 3 ग्राम थीरम या बाविस्टिन से प्रति किलोग्राम बीजों का उपचार करें दलहनी फसलों में मिटटी की जाँच के आधार पर ही उर्वरको का इस्तेमाल करना चाहिए किसान चाहें तो मसूर की बेहतर क्वालिटी  के लिए वर्मीकम्पोस्ट गोबर की खाद जीवामृत या जैव उर्वरकों का भी इस्तेमाल कर सकते है मसूर की फसल में सूखा सहने की क्षमता होती है यह फसल कम पानी में तैयार हो जाती है मसूर की खेती के लिए 1 से 2 सिंचाई की जाती है। 
सही समय पर मसूर की बुवाई करके 110 से 140 दिनों के अंदर 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक दानों की पैदावार ले सकते है इसके अलावा मसूर की फसल से करीब 30 से 35 क्विंटल पशु चारे का उत्पादन मिल जाता है यह फरवरी मार्च एक पक कर तैयार हो जाता है जब 70 से 80 % तक भूरापन आ जाए और पौधे पिले पड़ने लगे तो इसकी कटाई लार लेनी चाहिए।