किसानों को मालामाल करेगी मल्टीलेयर फार्मिंग ,जानिए खेती करने के तरिके

 
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भूमिगत जल स्तर हर साल नीचे जाने से किसानों को पानी की समस्या का सामना करना पड़ता है और बढ़ती महंगाई के कारण परंपरागत खेती करना मुश्किल होता जा रहा है इस तरह की खेती में बचत कम होती है मल्टीलेयर फार्मिंग की खेती में एक ही खेत में 4 से 5 तरह  की फसलें पैदा कर सकते है किसानों के लिए यह खेती मालामाल करने वाली साबित हो रही है 

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मल्टीलेयर फार्मिंग खेती का वह तरीका है जिसमें एक ही समय  में एक ही स्थान पर 4 से 5 फसलों की खेती की जाती है इसमें किसान पहले जमीन में ऐसी फसल लगाए जो की जमीन के अंदर उगती है फिर उसी स्थान पर सब्जी और अन्य पौधों को लगा सकते है इसके अलावा फलदार और छायादार पौध लगा सकते है 
मल्टीलेयर खेती में किस्मत आजमाने वाले किसानों को चाहिए के वे किसी अनुभवी किसान साथी या कृषि अधिकारीयों से इस खेती के बारे में सही जानकारी प्राप्त करें इसका कारण यह है की अलग -अलग इलाकों में जलवायु भी अलग -अलग होती है लघु और मध्यम किसानों के लिए यह खेती सोने पर सुहागा की तरह है वे कम जमीन होने पर भी इसमें 4 -5 गुना अधिक पैदावार कर सकते है 
मल्टी लेयर फार्मिंग अपनाने से किसानों को जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में भी फायदा मिलता है एक से अधिक फसलों के कारण पेड़ पौधों के पत्ते आदि जमीन पर गिर कर प्राकृतिक खाद में बदल जाते है इससे भूमि की उर्वरा सकती बढ़ती है खाद की बचत होने से लागत कम आएगी और कुल उत्पादन में वृद्धि होगी 
मल्टीलेयर फार्मिंग खेती की ऐसी विधि है जिसे आप जमीन के अलावा अपने मकान की छत पर भी कर सकते है इसके लिए छत पर देसी खाद मिली मिटटी की मोटी परत बिछानी होगी इसमें कम गहराई वाली फसल आप आसानी से उगा सकते है 

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मल्टीलेयर फार्मिंग में पहली परत में हल्दी या अदरक उगा सकते है इसके बाद दूसरी लेयर के रूप में ऐसी फसलों का चयन करें जो कम गहराई और कम ऊंचाई वाली हो जैसे साग-सब्जियों की फसलें इसी तरह तीसरी लेयर में पपीता या अन्य फलदार ऐसे पौधे लगाएं जो कम समय में फल देने लगें इनके भपुर दाम आपको मर्केल मिल जाएंगे अब चौथी लेयर की बारी में आप बेलदार फसल लगाएं ये जमीन से पोषण तो लेंगी ही लेकिन इनका विस्तार मचान आदि बना कर किया जा सकता है 
मल्टीलेयर फार्मिंग में किसानों को फसलों की एक सिंचाई करने का लाभ यह मिलता है की एक फसल में सिंचाई से सभी फसलों को पानी मिल जाता है इससे एकल फसल की तुलना में करीब 70 % कम पानी का इस्तेमाल होता है ऐसे में खेती की यह नई टेक्नीक पानी बचाने में भी सहायक है