Wheat Crop Management ; गेहूं की कृषि कर रहे किसान हो जाए सावधान, फसल में बढ़ रहा है इन बीमरियों का प्रकोप

 
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गेहूं हर रोज खाया जाने वाला अनाज है। यह भारत की प्रमुख फसल है जिसकी खेती सिर्फ सर्दियों में की जाती है। अभी तक देश के ज्यादातर इलाकों में गेहूं की बुवाई का काम पूरा हो चुका है और बीजो से पौध निकल आई है। यही समय फसल के लिए सबसे नाजुक माना जाता है। क्योंकि इस समय तरह-तरह के कीट और रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में किसानों को फसल ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है। ताकि समय पर कीट और रोगों से बचाया जा सके। इस आर्टिकल में हम हम आपको बताने जा रहे हैं कि फसल में किस समय कौन सा लोग लगता है इस रोग की पहचान कैसे होती है और कैसे समाधान हो सकता है। 

इन राज्यों में ज्यादा परेशानी होती है
जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा असर एक अच्छी पर देखा जाता है। खरीफ के सीजन में कीटों के रोग और मौसम परिवर्तन के कारण धान की काफी कमी हो गई है।  इसके लिए पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश के किसानों को सावधानी बरतने की आवश्यकता है। 

रतुआ रोग
गेहूं की फसल में सबसे ज्यादा होने वाला यह रतुआ रोग होता है। इसे रष्ट्र , रोली, गेरुआ रोग भी कहा जाता है। यह 3 तरह से होता है पीला रतुआ, बुरा रतुआ, काला रतुआ। यह एक पत्ति रोग है जो पहाड़ी इलाकों से हवा द्वारा मैदानी इलाकों में फैलता है और गेहूं की फसल को संक्रमित कर देता है। इस रोग में गेहूं की पत्तियां पीली पड़ने लगती है। 

पत्ती झुलसा रोग
कुछ इलाके ऐसे होते हैं जहां गेहूं की फसल झुलसा रोग की चपेट में आ जाती है। यह बीमारी लगने पर गेहूं की पत्तियां पूरी तरह से झुलस जाती है। यह रोक लगने पर फसल का विकास नहीं हो पाता और उत्पादन 50 फ़ीसदी तक गिर जाता है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर IFFCO-MC के रसायनों का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। इस दवा का छिड़काव कर के गेहूं की फसल में इस रोग के खतरे को कम किया जा सकता है। 

मोयले या माहो का प्रकोप
मध्य प्रदेश के कई इलाकों से गेहूं की फसल की जड़ों में पीले रंग का मोहल्ला या माहो लग जाता है। मेथी और धनिया की फसल पर भी यह कीट हावी हो रहा है। जो फसल के उत्पादन को कम करने में उनके योगदान देता है। इसकी रोकथाम के लिए कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर ही इमिडाक्लोप्रिड 17.8 % S.L.की 75 मिली मात्रा को 100 लीटर पानी में मिलाकर एक बीघा फसल पर स्प्रे करना होता है। 

किसान चाहे तो रसायनों का इस्तेमाल किए बिना सिंचाई के पानी में नीम का तेल भी छोड़ सकते हैं। इसके लिए नीम के तेल की 450 मिली मीटर ले और फसल बुवाई के 21 दिन के बाद पानी में बहा दे। चाहे तो क्लोरपायरीफॉस 20% ईसी की 1250 मिली मात्रा को 10-12 किलो रेत में मिलाकर प्रति बीघा फसल पर फैला सकते हैं। 

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