इस फसल की खेती करने से किसानों की आय होगी दुगुनी, जानिए कैसे

आजकल बदलते हुए समय के मुताबिक कृषि में अलग अलग तरह की तकनीकों को अपनाया जा रहा है। किसान आजकल खेती में अलग अलग तरह की तकनीकी अपना रहे है। ऐसे में यह बदलाव किसानों की आय को बढ़ाने में काफी मददगार है। इसी कर्म में आज हम किसानों को एक ऐसी फसल के बारे में बताने जा रहे है जो उनकी आय को दोगुना करने में उनकी मदद करेगी। आज हम जिसकी खेती की बात कर रहे है वह है तारामीरा की खेती। तारामीरा का सेवन लोग सलाद के रूप में बड़े चाव से करते है। यह हमारे सेहत के लिए बहुत पौष्टिक माना जाता है। इसके औषधीय गुणों के चलते इसकी मांग भी बढ़ रही है. इसलिए इसकी खेती किसानों के लिए इन दिनों बहुत लाभदायी साबित हो रहा है।
क्या है तारामीरा
तारामीरा सरसों परिवार की फसल हैं, इसमें तोरिया, भूरी सरसों, पीली सरसों तथा राय आता है. इस फसल की लंबाई 2 से 3 फीट होती है। इसकी फलियाँ लाल रंग की होती है। इसकी खेती आमतौर पर सभी तरह की भूमि में आसानी से की जाती है. तारामीरा में 35–37 प्रतिशत तेल निकलता है। इसके तेल का उपयोग खाना बनाने में किया जाता है।
मिट्टी की आवश्यकता
तारामीरा की खेती के लिए हर तरह की मिट्टी पर की जा सकती है। लेकिन बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए बहुत अधिक उपजाऊ मानी जाती है।
बीज
तारामीरा का बीज आकार में काफी छोटे होते हैं, इसीलिए इसकी खेती के लिए एक हेक्टेयर खेत में करीब 4 से 5 किलो बीज की आवश्यकता होती है। इसकी अच्छे उत्पादन के लिए बुवाई से पहले आप चाहें तो बीजोपचार करवा सकते हैं। इसकी बुवाई का सही समय अक्टूबर माह के पहले सप्ताह से नवंबर माह तक का महीना अच्छा माना जाता है।
बुवाई
तारामीरा की खेती के लिए जरुरी है इसकी बुवाई का तरीका। इसकी बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सेंटी मीटर और पौध से पौध की दूरी 10 सेंटी मीटर रखनी चाहिए।
किस्म
अच्छे उत्पदान के लिए जरूरी है, उन्नत किस्मों का चयन करना. टी-27, आईटीएसए, करनततारा, नरेंद्र तारा, ज्वाला तारा और जोबनेर तारा जैसी किस्में जो उत्पादन के लिए काफी उपयुक्त है।
खाद का प्रयोग
खाद की बात करें तो इसकी खेती के लिए खाद का सही उपयोग करना अनिवार्य है। किसान भाई 30 किलो नाइट्रोजन और 20 किलो फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल सकते है।
सिंचाई
तारामीरा की खेती के लिए पहली सिंचाई 40 से 50 दिन में फूल आने से पहले करनी होती है। उसके बाद दूसरी सिंचाई दाना बनते समय की जाती है। also read : इस विदेशी सब्जी की भारत में बढ़ रही है डिमांड से किसानों को हुआ गजब का फायदा, जानिए इसके लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाए