धान की खेती में यूरिया नहीं बल्कि डालें ये जैविक खाद, उत्पादन में होगा दुगुना मुनाफा, घर पर आसानी से कर सकते है तैयार

देश में किसानों की आय में बढ़ोतरी करने के लिए सरकार हर रोज नई नई एग्रो टेक्नोलॉजी विकसित कर रही है। वहीं खेती की लागत को कम करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। किसानों को कृषि में प्रशिक्षित कर खेती की लागत को कम किया जा सकता है। गौरतलब है कि आज के दौर में खेती के लिए उर्वरक, ईंधन आदि की लागत काफी बढ़ गई है। इसलिए जरूरी है कि खेती में लागत को कम किया जाए ताकि प्रॉफिट बढ़ सके और खेती से किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके। ऐसे में आज हम आपको इस पोस्ट के जरिए कुछ आसान टिप्स के बारे में जानकारी देने जा रहे है जिससे आप खेती में खाद के रूप में इस्तेमाल कर सकते है।
क्या होता है नील हरित शैवाल
नील हरित शैवाल एक जीवाणु होता है जो पौधों की तरह ही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कर जीवित रहता है। इसे साइनो बैक्टीरिया भी कहा जाता है। वायुमंडल से नाइट्रोजन की यौगिकीकरण कर पाने की क्षमता की वजह से किसान इसका उपयोग फसलों के लिए करते हैं। ये फसलों को नाइट्रोजन प्रदान कर, यूरिया की लागत को कम कर देता है। खास कर धान की खेती में शैवाल का विशेष उपयोग होता है।
कितनी यूरिया की होगी बचत
नील हरित शैवाल के उपयोग से सिर्फ यूरिया की ही बचत नहीं होती बल्कि इससे होने वाली पैदावार भी बहुत हद तक रसायन मुक्त होती है। रसायन मुक्त खाद्य पदार्थों की मांग काफी तेजी से बढ़ रही है, लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर सतर्क हो रहे हैं। इस तरह यूरिया की अच्छी बचत हो सकेगी। इससे यूरिया की बचत के साथ भूमि का भी सुधार हो सकेगा। जिससे मिट्टी की उत्पादकता में बढ़ोतरी होगी और चूंकि यह मिट्टी की कार्बनिक शक्ति के अलावा मिट्टी की जल अवरोधक क्षमता में भी वृद्धि करती है, इसलिए फसल के उत्पादन में भी वृद्धि होगी। साथ ही किसान इस जैविक यूरिया के उपयोग से पैदा होने वाले चावल को मार्केट में ज्यादा रेट में बिक्री कर पाएंगे।
कैसे बनाएं नील हरित शैवाल
ऐसी खुली जगह जहां दिन भर धूप आती है, वहां गड्ढा बना लें। गड्ढे की लंबाई दो मीटर, चौड़ाई एक मीटर और गहराई 8 से 10 इंच रख लें।
गड्ढे में पॉलीथीन की शीट बिछा दें और खेत के तीन से 4 किलो छनी हुई मिट्टी लें और उस पानी में मिलाएं।
अब गड्ढे साफ पानी डाल दें। पॉलीथिन इसलिए बिछाई जाती है ताकि पानी मिट्टी के अंदर न जाए।
अब 100 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट मिला दें।
इसके बाद 5 मिली ग्राम मेलाथियान को पानी में मिलाएं। इस रसायन को इसलिए मिलाया जाता है ताकि गड्ढे में पानी जमने की वजह से मच्छर न पनपे।
ये प्रक्रिया जब पूरी हो जाए तो अगले दिन इसमें 100 ग्राम नील हरित शैवाल छिड़क कर छोड़ दें।
पानी कम हो तो पानी देते रहें।
लगभग 6 से 7 दिनों में नील हरित शैवाल की मोटी परत बनने लगेगी।
अब पानी सूखने दें, जब पानी सूख जाए तो शैवाल को पॉलीथीन में रखें। और उन्हें यूरिया के रूप में खेतों में उपयोग करें।
एक बार नील हरित शैवाल की तैयारी के बाद, और उत्पादन के लिए गड्ढे में पानी दुबारा डाल दें। इस तरह 6 से 7 बार इस शैवाल का उत्पादन लिया जा सकता है। also read ; नींबू की इस प्रजाति से कुछ ही समय में होगा बंफर फायदा, जानिए इसकी खेती करने की विधि के बारे में