Sparrow kids: आज से कुछ दशक पहले तक हमारे आस-पास के परिवेश में गौरेया की चहचहाहट एक सामान्य दृश्य थी. छोटी और सुंदर गौरेया अपने मिलनसार स्वभाव और खुशमिजाज अंदाज से हमारे दिनों में खुशियां भर देती थीं. लेकिन, आज के समय में ये प्यारे पक्षी लगभग नदारद से हो गए हैं. क्यों और कैसे हुआ यह? आज हम आपको बताएंगे इसके पीछे की वजहें.
शहरीकरण का असर
हमारे आस-पास के पर्यावरण में आये बदलावों में सबसे बड़ा हाथ शहरीकरण का है. नई इमारतों और वाणिज्यिक परिसरों की बढ़ती संख्या ने गौरेया के लिए प्राकृतिक आवास को सीमित कर दिया है. ऊंची इमारतें और सीमेंट की दीवारें इन चिड़ियों के लिए घोसला बनाने में अनुपयुक्त साबित होती हैं.
प्राकृतिक आहार की कमी
शहरी इलाकों में हरियाली की कमी और मिट्टी का अभाव गौरेया के लिए दोहरी मार साबित हुआ है. गौरेया जो कि प्राकृतिक रूप से कीड़े और अनाज खाती हैं, उन्हें शहरों में अपने लिए उपयुक्त खाना नहीं मिल पाता है.
प्रदूषण की मार
वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, और ध्वनि प्रदूषण ने गौरेया के जीवन को प्रभावित किया है. इनकी शारीरिक संरचना और प्रजनन क्षमता पर भी इसके विपरीत प्रभाव पड़े हैं.
मोबाइल टावर और रेडिएशन
आधुनिक युग में मोबाइल टावरों का विस्तार गौरेया के लिए एक अदृश्य खतरा बन कर उभरा है. टावरों से निकलने वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से इनके स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है.
कीटनाशकों का उपयोग
कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग ने कीड़ों की प्रजातियों को नष्ट कर दिया है, जिससे गौरेया के लिए खाद्य संसाधनों में कमी आई है. यह इनके प्रजनन और जीवित रहने की क्षमता को प्रभावित करता है.
पेड़ों की कमी और घोसला निर्माण में समस्या
शहरीकरण के चलते पेड़ों की कमी ने भी गौरेया के घोसला निर्माण की प्रक्रिया को बाधित किया है. पेड़ों का अभाव इन्हें सुरक्षित आवास प्रदान करने में असमर्थ बनाता है.