Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति के अधिकार पर दिया बड़ा फैसला, जिसमें सरकार को निजी संपत्तियों पर अधिकार से रोक दिया गया है। जानिए कैसे 9 जजों की संविधान पीठ ने 1978 के बाद के पुराने फैसलों को पलटते हुए नागरिकों के निजी संपत्ति अधिकार को और भी मजबूत कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति के अधिकार को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस फैसले में Supreme Court ने स्पष्ट किया कि सरकार सभी निजी संपत्तियों पर अपना अधिकार नहीं जमा सकती। निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति के रूप में मानने के अधिकार को सीमित करते हुए, कोर्ट ने कहा कि निजी संपत्ति को राज्य के अधीन रखना संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 9 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है।
निजी संपत्ति पर अधिकार नहीं कर सकती सरकार
इस मामले की सुनवाई के दौरान 9 जजों की पीठ ने कहा कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संसाधन नहीं माना जा सकता। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की उस धारणा को स्थापित करता है कि निजी संपत्ति व्यक्तिगत अधिकार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे राज्य की मनमानी से संरक्षित किया जाना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने इस फैसले में कहा, “तीन जजमेंट हैं, जिसमें मेरा और छह अन्य जजों का सामूहिक सहमति वाला निर्णय है, जबकि जस्टिस नागरत्ना ने आंशिक सहमति जताई और जस्टिस धुलिया का निर्णय असहमति वाला है।”
1978 के फैसलों को पलटा, निजी संपत्ति के अधिकार को मिली मज़बूती
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में 1978 के बाद आए उन निर्णयों को भी पलट दिया है, जिसमें समाजवादी विचारधारा को अपनाते हुए राज्य को निजी संपत्ति पर अधिकार देने की बात कही गई थी। पुराने फैसलों में कहा गया था कि राज्य समाज की भलाई के लिए सभी निजी संपत्तियों को अपने अधीन कर सकता है। लेकिन वर्तमान फैसले में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि ऐसा करना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है।
अनुच्छेद 31C पर सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 31C पर भी अपना रुख स्पष्ट किया। कोर्ट ने कहा कि केशवानंद भारती मामले में जिस हद तक अनुच्छेद 31C को बनाए रखा गया था, उसे उसी प्रकार बरकरार रखा जाएगा। यह अनुच्छेद राज्य को कुछ निश्चित परिस्थितियों में संपत्ति के अधिकारों को अधिग्रहित करने की अनुमति देता है, लेकिन इसे पूरी तरह से लागू करने के लिए संविधान के मूल ढांचे का सम्मान किया जाना आवश्यक है।
फैसले का महत्व और निजी संपत्ति का संरक्षण
यह फैसला एक महत्वपूर्ण मिसाल के रूप में उभर कर आया है, जो निजी संपत्ति के अधिकार को संरक्षण प्रदान करता है। यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि राज्य बिना पर्याप्त और वैध कारण के किसी भी नागरिक की संपत्ति पर कब्जा नहीं कर सकता। यह न केवल भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्धांतों की रक्षा करता है, बल्कि नागरिकों के निजी संपत्ति के अधिकार को भी मजबूत बनाता है।
निजी संपत्ति के अधिकार की जीत
सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला निजी संपत्ति के अधिकार को संरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि संविधान के बुनियादी ढांचे की सुरक्षा के लिए निजी संपत्ति का संरक्षण आवश्यक है और इसे राज्य की मनमानी से मुक्त रखा जाना चाहिए। इस फैसले से भारत में निजी संपत्ति के अधिकार की मज़बूती बढ़ेगी और यह नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा।