Supreme court : वर्तमान समय में प्रॉपर्टी के विवाद बहुत ही आम बात हो गया है। खासकर पैतृक प्रॉपर्टी के मामले ज्यादा बढ़ते हुए देखे जा रहे हैं हालांकि आपको बता दें कि पैतृक प्रॉपर्टी में कानून की ओर से पुत्र एवं पुत्री को समान अधिकार प्रदान किए गए हैं। लेकिन फिर भी पिता एवं भाई उस पैतृक प्रॉपर्टी के बंटवारे के टाइम पिता ,पुत्री को और भाई ,बहन को हिस्सा देने से इनकार कर देते हैं तो ऐसी स्थिति में बेटी या बहन अपने अधिकार के लिए दवा कर सकते हैं। कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं बता दें कि इतना ही नहीं बेटी के बच्चे भी यह दावा कर सकते हैं बेटी के बच्चे भी अपने नाना की पैतृक संपत्ति में उतना ही अधिकार रखते हैं। जितना बेटे के बच्चे ऐसे में पैतृक प्रॉपर्टी को लेकर हिंदू उत्तराधिकार कानून को 2005 में संशोधित किए गए थे।
Supreme court : बेटी के बच्चे नाना से ले सकते हैं मां की प्रॉपर्टी में हक
आपको बता दें कि हिंदू उत्तराधिकार कानून 2005 के अनुसार बेटी की बेटे की अधिकार होने के कारण बेटी के बच्चे भी अपने नाना से पैतृक प्रॉपर्टी का हक ले सकते हैं। बेशक चाय बेटी की मृत्यु हो चुकी हो। आपको बता दें कि इसका हिंदू अधिकार कानून में किए गए संशोधन वाले दिनांक से कोई लेनदेन नहीं होगी। ऐसे में इस पर सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पिकनिक किए हैं कि अगर बेटे का पैतृक प्रॉपर्टी में हक है और उसके बच्चे भी आगे हाथ लेने का अधिकार रखते हैं तो बेटी के बच्चे भी या अधिकार रखते हैं।
Supreme court : सुप्रीम कोर्ट ने यह भी किया स्पष्ट
बताने की हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 में पुत्र एवं पुत्री का पैतृक संपत्ति में हक को लेकर अलग प्रावधान थे। ऐसे में वर्ष 2005 में इस कानून में संशोधन कर बेटियों को पैतृक प्रॉपर्टी में बेटी की तरह हमेशा के लिए समान हक कानूनी रूप से दिए गए। पिता एवं भाइयों द्वारा इनकार करने पर कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं एवं दावा कर सकते हैं । वही यह संशोधन 9 सितंबर 2005 को किए गए थे।
बता दे कि इसमें यह प्रावधान था की अगर पिता 9 सितंबर 2005 को जिंदा न रहे हो तो बेटी का अधिकार बेटे की तरह समान रूप से नहीं होंगे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में स्पष्ट कर दिए हैं कि पिता के उक्त तारीख तक जिंदा रहने से कोई संबंध नहीं है। बेटी को जन्म से लेकर आजीवन दिया अधिकार बेटे की तरह सामान मिलेंगे। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने या फैसला दिए थे।
अब खेत की जमीन में भी बेटी को मिलेगा समान अधिकार
उत्तराधिकार कानून में 2005 में किए गए संशोधन के बाद बेटियों को खेत की जमीन में भी समान अधिकार प्रदान किए गए हैं। इतना ही नहीं अगर शादी टूट भी जाता है तो वह पिता के घर जाकर बेटे के समान एवं बराबर का हक ले सकते हैं। वही यह हक बेटा एवं बेटी के जन्म से ही समान रूप से रहेंगे वही बेटी के बच्चे भी चाहे तो नाना की पैतृक प्रॉपर्टी में अपनी मां का हक ले सकते हैं।
अगर दादा ने वसीयत नहीं लिखवाई है तो पैतृक संपत्ति के बंटवारे में पिता कोई मनमर्जी नहीं कर सकते
बता दे कि अगर दादा ने वसीयत नहीं लिखवाए हैं तो पैतृक संपत्ति के बंटवारे में पिता कोई मनमर्जी नहीं कर सकते हैं। क्योंकि वह संपत्ति सभी को विरासत के रूप में मिले होते हैं। बता देंगे 2005 के हिंदू उत्तराधिकार कानून के अनुसार बेटी का जन्म 9 सितंबर 2005 से पहले हुए हो या बाद में इससे उसके सामान उत्तराधिकार के हक पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बता दे की इस संशोधन के बाद यह संशय हुआ था कि इस दिनांक से पहले जन्मी बेटियों को समान उत्तराधिकार का हक नहीं मिलेगा
बल्कि बाद में जन्मी बेटी को या हक मिलेगा। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि बेटी कभी भी जननी हो उसका सामान उत्तराधिकार का हक रहेगा। बता दें कि पैतृक संपत्ति में पिता की मृत्यु से पहले या बाद में बेटी के हक पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा। यहां पर यह भी बताए गए हैं कि पिता की स्व अर्जित संपत्ति एवं पैतृक संपत्ति में बेटी उसका हिस्सा भाई के बराबर ही होगा।
कानून के अनुसार संपत्ति दो तरह के होते हैं
आपको बता दें कि कानून के अनुसार संपत्ति दो तरह के होते हैं। एक पैतृक संपत्ति और दूसरा स्वअर्जित संपत्ति पैतृक संपत्ति में चार पीढ़ी पहले तक पुरुषों का समान हक प्राप्त होता है। बता दे कि इसमें वैसी अर्जित संपत्तियां शामिल हैं जिनका कभी बटवारा नहीं हुए हो। ऐसे में इसमें बेटी का भी समान हक प्राप्त होता है। वही 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून में किए गए संशोधन से पहले ऐसी संपत्तियों पर सिर्फ बेटों का ही हक प्राप्त होता था। ऐसे में अब अब पिता ऐसी संपत्तियों की बिक्री एवं बंटवारे में मनमर्जी से नहीं कर सकते हैं सभी की सहमति होना बहुत ही जरूरी है।
स्वअर्जित संपत्ति पर पिता का चलता है पूरा मनमर्जी
बता दे कि अगर पिता ने अपनी खून पसीना की कमाई से संपत्ति को अर्जित किए हैं तो उस संपत्ति पर पिता का पूरा अधिकार होता है। ऐसे में पिता अपनी मर्जी से अपने संपत्ति को किसी को भी दे सकते हैं और नहीं भी दे सकते हैं इसमें पिता चाहे तो अपनी प्रॉपर्टी का कम या ज्यादा बटवारा भी कर सकते हैं । उसमें पूरी तरह से पिता की ही मर्जी चलते हैं। ऐसे में पिता को ना तो पुत्र ना तो पुत्री यूं कहे तो कोई नहीं पिता को चुनौती दे सकते हैं और ना ही दवा जाता सकते हैं। इसमें बेटा हो या बेटी कोई भी कुछ नहीं कर सकते हैं।
पिता द्वारा संपत्ति वसीयत लिखने एवं ना लिखने का हक पर असर
आपको बता दें कि अगर पिता जीते जी अपने संपत्ति की वसीयत लिख देती है तो उसी अनुसार हक सुनिश्चित होते हैं। लेकिन वसीयत लिखे बिना पिता की मृत्यु पर सभी कानूनी उत्तराधिकारों को उनकी संपत्तियों पर बराबर का अधिकार समझ जाएंगे। बता दे कि हिंदू उत्तराधिकार कानून में पुरुष उत्तराधिकारों की चार कैटिगरी है। पहला हक पहली श्रेणी के उत्तराधिकारों को जाएगा इनमें विधवा बेटियां और बेटों के साथ-साथ अन्य लोग शामिल रहेंगे। बता दें कि ऐसी स्थिति में सभी उत्तराधिकारों का संपत्ति पर समान अधिकार समझ जाते हैं जिसमें बेटी भी शामिल रहते हैं।
वैवाहिक बेटी का पैतृक संपत्ति पर कितना है अधिकार
आपको बता दें कि हिंदू उत्तराधिकार कानून कि अगर हम बात करते हैं तो करीब 19 वर्ष पहले यानी 2005 से पहले बेटियां हिंदू अविभाजित परिवार की सदस्य माने जाते थे। हमवारिस होने या समान रूप से उत्तराधिकार का दर्जा कानून नहीं थे। बाद में बेटे की तरह पैतृक संपत्ति पर हक होने की जरूरत समझ गए इसीलिए 2005 में इस कानून में संशोधन किए गए इसे लेकर कई तरह की मांग भी उठे। यहां पर यह भी बताए गए कि कानून में हमवारिस या समान उत्तराधिकारी उनको माने गए हैं। जिनका खुद से पहले की चार पीडिया की बिना बंटवारे वाले संपत्ति पर हक होते हैं।
इस कानूनी प्रावधान को भी जानना है जरूरी
आपको बता दें कि यहां पर यह गौर करने योग्य है कि बिना बंटवारे वाले संपत्ति यानी अविभाजित संपत्ति पर हक होता है। हिंदू उत्तराधिकार कानून में 2005 में किए गए संशोधन के बाद बेटी को बेटे की तरह सामान उत्तराधिकार माने गए हैं। ऐसे में बेटी की शादी के बाद हिंदू आदिवासी परिवार का हिस्सा नहीं माने जाते हैं लेकिन इससे आप पिता की संपत्ति पर उसके हक को लेकर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।