Supreme Court सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कड़ी फटकार लगाई। न्यायालय ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से उचित मुआवजा दिए बिना वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत ने राज्य सरकार को अपने कर्तव्यों की याद दिलाते हुए दो महीने के भीतर मुआवजा देने का आदेश दिया।
20 साल पुराना मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
यह मामला बेंगलुरु-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट से जुड़ा था, जिसके लिए 2003 में भूमि अधिग्रहण किया गया था। हालांकि, 2005 में सरकार ने जमीन पर कब्जा तो ले लिया, लेकिन 22 वर्षों तक प्रभावित लोगों को कोई मुआवजा नहीं दिया गया। इस देरी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में 2022 में याचिका दायर की गई थी, जिस पर अब फैसला आया है।
नए सिरे से होगा मुआवजे का निर्धारण
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि प्रभावित लोगों को 2003 की कीमतों के हिसाब से नहीं, बल्कि 2019 के मूल्यांकन के आधार पर मुआवजा दिया जाएगा। अदालत ने यह भी कहा कि 21 साल बाद पुरानी दरों पर मुआवजा देना संवैधानिक अधिकारों का मजाक उड़ाने जैसा है।
सपत्ति का संवैधानिक अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि 1978 के 44वें संविधान संशोधन के बाद संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं रहा, लेकिन यह अनुच्छेद 300-ए के तहत संवैधानिक अधिकार बना हुआ है। इसलिए, किसी को भी उसकी संपत्ति से उचित मुआवजा दिए बिना वंचित नहीं किया जा सकता।
अदालत के दरवाजे खुले रहेंगे
कोर्ट ने प्रभावित लोगों को आश्वासन दिया कि यदि वे सरकार द्वारा तय किए गए मुआवजे से संतुष्ट नहीं होते हैं, तो वे फिर से अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। साथ ही, कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को समय पर मुआवजा देने की सख्त हिदायत दी है।