Supreme Court Decision – सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्तियों को समुदाय के भौतिक संसाधन मानते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने स्पष्ट किया है कि राज्य केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही निजी संपत्तियों को ले सकता है। कोर्ट की ओर से आए इस फैसले को विस्तार से जानने के लिए खबर को पूरा पढ़ लें…
सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्तियों को समुदाय के भौतिक संसाधन मानते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। न्यायालय की संविधान पीठ ने 7:2 के बहुमत से कहा कि राज्य निजी संपत्तियों को सार्वजनिक भलाई के लिए अधिग्रहित नहीं कर सकता। इसका मतलब है कि सभी निजी संपत्तियां (private properties) सार्वजनिक उपयोग में नहीं लायी जा सकतीं। यह निर्णय राज्य के अधिकार और नागरिकों की संपत्ति के संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करने में महत्वपूर्ण है, जिससे नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
निजी संपत्तियों पर अधिकार की सीमा रेखा खींची-
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने स्पष्ट किया है कि राज्य केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही निजी संपत्तियों को ले सकता है। सभी निजी संपत्तियों को सामुदायिक संसाधन नहीं माना जा सकता, जिन्हें सार्वजनिक भलाई के लिए लिया जा सके। इस निर्णय ने सरकार की संपत्ति पर नियंत्रण (control over property) के दायरे को स्पष्ट किया है और उन लोगों को भी झटका दिया है जो सर्वे करके सभी संपत्तियों को समान रूप से वितरित करने की वकालत करते हैं। इस फैसले ने निजी संपत्ति पर व्यक्ति के अधिकार को मजबूत किया है।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय पीठ ने महाराष्ट्र के एक मामले में संविधान पीठ को भेजे गए कानूनी सवालों का जवाब देते हुए यह फैसला सुनाया है। नौ न्यायाधीशों ने 429 पेज के कुल तीन अलग-अलग फैसले दिए हैं जिसमें प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने स्वयं और छह अन्य न्यायाधीशों हृषिकेश राय, जेबी पार्डीवाला, मनोज मिश्रा, राजेश बिंदल, सतीश चंद्र शर्मा और अगस्टीन जार्ज मसीह की ओर से फैसला दिया है जिसमें उपरोक्त व्यवस्था दी है। जबकि जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने बहुमत के फैसले से आंशिक सहमति जताई है। जबकि जस्टिस सुधांशु धूलिया ने बहुमत से असहमति जताने वाला फैसला दिया है।
कुछ परीक्षणों को पूरा करना होगा-
जस्टिस चंद्रचूड़ ने बहुमत के फैसले में स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति के स्वामित्व में मौजूद संपत्ति को केवल इस आधार पर समुदाय का भौतिक संसाधन (Physical resources) नहीं माना जा सकता कि यह भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। कोर्ट ने कहा कि किसी निजी संपत्ति को ऐसा मानने से पहले उसे कुछ परीक्षणों को पूरा करना होगा। अनुच्छेद 39(बी) की व्याख्या करते हुए, कोर्ट ने बताया कि जांच के दौरान संसाधनों की प्रकृति, विशेषताएं, समुदाय पर प्रभाव, संसाधनों की कमी और निजी स्वामित्व के परिणामों का ध्यान रखा जाना आवश्यक है। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट (Suprme Court Decision) द्वारा विकसित पब्लिक ट्रस्ट सिद्धांत भी यह पहचानने में सहायक हो सकते हैं कि कौन से संसाधन समुदाय के भौतिक संसाधनों में आते हैं।
जस्टिस धूलिया ने अपने अलग फैसले में बहुमत से पूर्ण असहमति जताई-
जस्टिस नागरत्ना ने अलग से दिए गए फैसले में बहुमत से आंशिक सहमति जताई, जबकि जस्टिस धूलिया ने अपने फैसले में बहुमत से पूर्ण असहमति व्यक्त की। जस्टिस धूलिया का कहना था कि भौतिक संसाधनों के नियंत्रण और वितरण का अधिकार संसद के पास है। उन्होंने यह भी बताया कि यह तय करना कि निजी स्वामित्व वाले संसाधन कब और कैसे भौतिक संसाधनों की श्रेणी में आते हैं, यह न्यायालय (Court) का कार्य नहीं है। यह मामला विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 31C और 39(B) एवं (C) की व्याख्या से संबंधित था। मामला मुंबई से उत्पन्न हुआ और मुख्य याचिका प्रापर्टी ओनर्स एसोसिएशन एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य के बीच थी।