Traditional Monsoon Prediction: भारत में जहां मौसम विभाग उपग्रहों और डिजिटल मॉडल्स के जरिए मानसून की भविष्यवाणी करता है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के किसान आज भी पारंपरिक और प्राकृतिक संकेतों के आधार पर मौसम का पूर्वानुमान लगाते हैं. मालवा क्षेत्र के किसान तो खासतौर पर पक्षियों की गतिविधियों, पेड़ों की हरियाली और मिट्टी की नमी को देखकर तय करते हैं कि मानसून कब आएगा और फसल बुआई कब करनी है.
टिटहरी और निबौड़ी देती हैं मानसून के आने के संकेत
गांवों में रहने वाले अनुभवी किसान प्रहलाद धबाई बताते हैं कि अगर खेतों में टिटहरी पक्षी के अंडे दिखने लगें, तो इसका मतलब है कि प्री-मानसून की गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं. और अगर अंडे से चूजे निकल आएं तो समझिए कि मानसून अब क्षेत्र में दस्तक देने वाला है. वहीं नीम के पेड़ पर लगने वाली निंबौड़ी जब पककर नीचे गिरने लगे और पेड़ पर बहुत कम मात्रा में निंबौड़ी बच जाए, तो भी यह माना जाता है कि मानसून निकट है.
खरीफ फसल की बुआई कब करें?
नेगड़दा गांव के वरिष्ठ किसान कृष्ण पाटीदार के अनुसार खरीफ फसल की बुआई का सही समय तब माना जाता है. जब बेर के पेड़ पर पतझड़ के बाद फिर से पर्याप्त हरियाली लौट आती है. उनका कहना है कि यह हरियाली केवल अच्छी बारिश के बाद ही आती है और यही सही समय होता है खरीफ फसलों की बुआई का.
मिट्टी के लड्डू से भी तय होता है बुआई का समय
पाटीदार यह भी बताते हैं कि खेत की मिट्टी को 4 इंच गहराई तक खुदाई कर मुठ्ठी में लेकर लड्डू बनाया जाता है. अगर यह लड्डू टूटता नहीं है और बिखरता नहीं है, तो यह संकेत है कि मिट्टी में पर्याप्त नमी आ चुकी है और बुआई की जा सकती है.
बारिश कितने महीने चलेगी?
नामली गांव के किसान बालकृष्ण साबरिया के अनुसार टिटहरी पक्षी आमतौर पर चार अंडे देती है. ये अंडे घोंसले में किस दिशा में रखे गए हैं, उससे बारिश की अवधि का अनुमान लगाया जाता है. यदि तीन अंडों के नुकीले हिस्से घोंसले के केंद्र की ओर हों, तो माना जाता है कि तीन महीने बारिश होगी. और अगर चौथा अंडा थोड़ा घूमा हो, तो अनुमान होता है कि साढ़े तीन महीने तक मानसून सक्रिय रहेगा.
रोहिणी नक्षत्र में नहीं हुई बारिश?
परंपरागत मान्यताओं के अनुसार अगर रोहिणी नक्षत्र के दौरान बारिश नहीं होती, तो यह अच्छे मानसून का संकेत माना जाता है. लेकिन यदि इसी अवधि में भारी बारिश होकर पानी बह जाता है, तो यह संकेत देता है कि बरसात में रुकावटें आ सकती हैं और खंडवर्षा की स्थिति बन सकती है.
क्या वैज्ञानिक आधार भी है इन देसी तरीकों का?
कृषि विभाग के कुछ अधिकारी भले इन तरीकों को पूरी तरह न मानते हों. लेकिन उनका भी कहना है कि कई पारंपरिक संकेत वैज्ञानिक आधार पर ही टिके हुए हैं. वास्तव में, प्रकृति के व्यवहार और मौसम के बदलाव का अनुभव किसानों ने पीढ़ी दर पीढ़ी संजोया है, जो अब भी बहुत सटीक साबित हो रहा है.

 
			 
                                 
                              
		 
		 
		 
		