कबूतरों का इंसानों के साथ संबंध बहुत पुराना है. प्राचीन काल से ही, कबूतरों का इस्तेमाल संदेशवाहक के रूप में किया जाता रहा है. बॉलीवुड फिल्मों में भी इन्हें शांति के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया है. यह पक्षी न केवल संचार के प्राचीन साधन रहे हैं बल्कि इन्होंने इंसानों के घरों में अपना घोंसला बनाकर एक खास स्थान भी दिया जाता है.
कबूतरों की मौजूदगी और स्वास्थ्य पर असर
हालांकि कबूतरों की मौजूदगी इंसानों के लिए स्वास्थ्य संबंधी कई जोखिम (health risks) भी साथ लेकर आती है. शहरी क्षेत्रों में जहां कबूतर अक्सर बालकनियों और छतों पर नजर आते हैं, वहां इनके मलत्याग से पैदा गंदगी स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकती है. कबूतर हर 15-30 मिनट में मलत्याग करते हैं जिससे विभिन्न जीवाणुओं और विषाणुओं का प्रसार होता है जो मनुष्यों में विभिन्न रोग (diseases) पैदा कर सकते हैं.
दिल्ली का एक मामला
हाल ही में दिल्ली के एक युवक को कबूतरों के मल के दीर्घकालिक संपर्क के कारण एक दुर्लभ और जानलेवा फेफड़ों की बीमारी (lung disease) हो गई. यह घटना इस बात की चेतावनी है कि कबूतरों के मल में मौजूद विषाक्त पदार्थ किस प्रकार से हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं.
विशेषज्ञों की सलाह और निवारक उपाय
हैदराबाद के केयर हॉस्पिटल्स के कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ के अनुसार कबूतरों के मल में मौजूद प्रोटीन हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे सांस से संबंधित विभिन्न समस्याएं हो सकती हैं. इस समस्या से बचने के लिए, घरों की बालकनियों और छतों को कबूतरों से मुक्त रखना चाहिए. बालकनी और छत पर जाली (netting) लगाना, सफाई के दौरान सुरक्षात्मक उपकरण (protective gear) पहनना और कीटाणुनाशकों का उपयोग करना कुछ प्रभावी उपाय हो सकते हैं.