“स्वाहा” का क्या होता है महत्व और यज्ञ के दौरान क्यों बोला जाता है इसे, जानिए विस्तार से…
हिंदू धर्म में यज्ञ और हवन करने की परंपरा सदियों पुरानी है। ऐसा माना जाता है कि यदि आहुति डालते समय स्वाहा न बोला जाए तो देवता उस आहुति को ग्रहण नहीं करते। यज्ञ और हवन में आहुति डालते समय स्वाहा जरूर बोला जाता है। इतना ही नहीं हवन या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में मंत्र पाठ करते हुए स्वाहा कहकर ही हवन सामग्री, अर्घ्य या भोग भगवान को अर्पित करते हैं, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि हर मंत्र के अंत में बोले जाने वाले शब्द स्वाहा का क्या अर्थ है? दरअसल कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जा सकता है। जब तक कि हवन का ग्रहण देवता ना कर लें। लेकिन देवता ऐसा ग्रहण तभी कर सकते हैं जबकि अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए।

बता दें कि स्वाहा शब्द संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ सुव्यवस्थित तरीके से आमंत्रित करना होता है। इस शब्द का निर्माण ‘सु’ उपसर्ग तथा ‘आह्वे’ धातु से बना है। ‘सु’ का अर्थ ‘अच्छे, सुंदर या व्यवस्थित ढंग से’ और ‘आह्वे’ का अर्थ बुलाना होता है। यज्ञ करते समय किसी देवता को उचित रीति से आदरपूर्वक बुलाने के लिए स्वाहा शब्द का प्रयोग किया जाता है।

वहीं दूसरे शब्दों में कहें तो जरूरी पदार्थ को उसके प्रिय तक सुरक्षित पहुंचाना। श्रीमद्भागवत और शिव पुराण में स्वाहा से संबंधित वर्णन किए गए हैं। मंत्र पाठ करते हुए स्वाहा कहकर ही हवन सामग्री भगवान को अर्पित करते हैं।

श्रीमद्भागवत कथा तथा शिव पुराण में स्वाहा से संबंधित वर्णन आए हैं। इसके अलावा ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि वैदिक ग्रंथों में भी अग्नि की महत्ता पर अनेक सूक्तों की रचनाएं हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार स्वाहा, दक्ष प्रजापति की पुत्री थी। इनका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया था। अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हविष्य ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम से ही हविष्य आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है। वहीं एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक अग्निदेव की पत्नी स्वाहा के पावक, पवमान और शुचि नामक 3 पुत्र हुए।

स्वाहा की उत्पत्ति से अन्य रोचक कहानी भी जुड़ी हुई है। इसके अनुसार, स्वाहा प्रकृति की ही एक कला थी। जिसका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आग्रह पर संपन्न हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को यह वरदान दिया था कि केवल उसी के माध्यम से देवता हविष्य को ग्रहण कर पाएंगे। ऐसे में यज्ञ प्रयोजन तभी पूरा होता है जब आह्वान किए गए देवता को उनका पसंदीदा भोग पहुंचा दिया जाए।
