हरियाणा के भिवानी जिले के एक छोटे से गांव नाथुवास में एक अनोखी परंपरा कायम है जहां ग्रामीण दूध बेचने के बजाय इसे मुफ्त में बांटना पसंद करते हैं. इस गांव में लगभग 750 घर हैं और प्रत्येक घर में दो से सात गाय और भैंसें हैं. यहाँ के लोगों का मानना है कि यह परंपरा उनके लिए समृद्धि और स्वास्थ्य का प्रतीक है.
दूध वितरण की पुरानी परंपरा
नाथुवास में दूध वितरण की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है. इस परंपरा की शुरुआत एक प्राचीन मान्यता से हुई थी, जब गांव में एक गंभीर महामारी फैली थी. उस समय, गांव के महंत ने इस नियम को स्थापित किया था कि कोई भी व्यक्ति दूध का व्यापार नहीं करेगा. यह माना जाता है कि इस प्रथा के कारण गांव में दोबारा कभी महामारी नहीं फैली.
आर्थिक जिम्मेदारियों का निर्वहन
जबकि दूध की बिक्री नहीं की जाती ग्रामीण दूध से घी बनाकर उसे बेचते हैं, जिससे उनका गुजारा चलता है. इस प्रकार गांव के लोग न केवल पशुपालन से जुड़ी आर्थिक जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं बल्कि अपने परिवार की आवश्यकताओं को भी संतुष्ट करते हैं.
दूध बेचने पर रोक और इसके परिणाम
इतिहास गवाह है कि जब भी गांव में किसी ने दूध बेचने की कोशिश की, उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़े हैं. गांव के लोगों का मानना है कि इस प्रथा का उल्लंघन करने पर उन्हें अप्रिय घटनाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे यह परंपरा और भी मजबूत हो जाती है.
परंपरा के फायदे
यह परंपरा न केवल समुदाय को एकजुट करती है बल्कि सभी को स्वस्थ दूध उपलब्ध कराने का माध्यम भी बनती है. इससे गांव के बच्चों को भरपूर दूध मिलता है, और किसी भी तरह की आपात स्थिति में ग्रामीण एक-दूसरे की मदद करने को तत्पर रहते हैं.