Cow Farming: हिमाचल प्रदेश में खेती की पारंपरिक पद्धति को बदलने के लिए सरकार ने प्राकृतिक खेती को अपनाने की दिशा में बड़े कदम उठाए हैं. सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती तकनीक को 2018 में लागू किया गया जिससे किसानों को कम लागत में अधिक उत्पादन करने का मौका मिला. इस पद्धति को अपनाकर, किसान न केवल अपनी खेती की लागत कम कर सकते हैं बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता भी बनाए रख सकते हैं. वर्तमान में हिमाचल के दो लाख से अधिक किसान इस मॉडल का हिस्सा बन चुके हैं.
किसानों के लिए देसी गाय खरीदने पर सब्सिडी
हिमाचल सरकार किसानों को देसी गाय (native cow farming benefits) खरीदने पर 25,000 रुपये की सब्सिडी दे रही है. यदि कोई किसान दूसरे राज्य से गाय खरीदता है, तो परिवहन लागत के लिए अतिरिक्त 5,000 रुपये की मदद दी जाती है. इसके अलावा, मंडी फीस के लिए 2,000 रुपये अलग से दिए जाते हैं. इस योजना से देसी नस्ल की गायों का महत्व बढ़ा है और किसानों को प्राकृतिक खेती में मदद मिल रही है.
गोशाला फर्श और गोमूत्र ड्रम के लिए आर्थिक सहायता
किसानों के लिए गाय के शेल्टर (cow shelter subsidy scheme) का फर्श पक्का करने के लिए 8,000 रुपये की सहायता दी जा रही है. साथ ही, गोमूत्र को इकट्ठा करने के लिए तीन ड्रमों पर 2,250 रुपये की सब्सिडी दी जाती है. यह कदम प्राकृतिक खेती के लिए आवश्यक जैविक खाद और कीटनाशक बनाने में मदद करता है. सरकार की यह पहल किसानों को अपनी कृषि पद्धतियों को बदलने और प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने के लिए प्रेरित करती है.
साइकिल हल पर विशेष सब्सिडी
प्राकृतिक खेती में उपयोग होने वाले साइकिल हल (cycle plough subsidy in himachal) पर भी हिमाचल सरकार ने 1,500 रुपये की सब्सिडी देने की घोषणा की है. यह हल छोटे और मध्यम आकार की जमीन पर खेती करने वाले किसानों के लिए बहुत उपयोगी है. इससे न केवल खेती की लागत घटती है, बल्कि किसानों का समय भी बचता है.
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती
सुभाष पालेकर द्वारा विकसित यह तकनीक पूरी तरह जैविक है और इसमें रासायनिक खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं होता. इसे जीरो बजट प्राकृतिक खेती मॉडल (zero budget farming benefits) कहा जाता है, क्योंकि इसमें लागत बेहद कम होती है. इस पद्धति से फसलों की गुणवत्ता बढ़ती है और जमीन की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहती है.
प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग
जो किसान इस पद्धति को अपनाना चाहते हैं, वे अपने नजदीकी कृषि विभाग (agriculture training for natural farming) में जाकर आवेदन कर सकते हैं. राज्य सरकार इन किसानों के लिए दो दिनों की विशेष ट्रेनिंग आयोजित करती है. इस ट्रेनिंग में किसानों को प्राकृतिक खेती के सभी आवश्यक पहलुओं जैसे जैविक खाद तैयार करना, फसल प्रबंधन और कीट नियंत्रण के तरीकों की जानकारी दी जाती है.
पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक मजबूती का संगम
हिमाचल प्रदेश की यह योजना केवल किसानों की मदद तक सीमित नहीं है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देती है. जैविक खेती (organic farming benefits for environment) से मिट्टी की सेहत सुधरती है और पानी की खपत भी कम होती है. सरकार की यह पहल हिमाचल को एक प्राकृतिक खेती का मॉडल राज्य बनाने की दिशा में अग्रसर है.
किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में बड़ा कदम
सरकार की इस योजना का उद्देश्य किसानों की आर्थिक स्थिति (farmer income improvement program) को मजबूत करना है. प्राकृतिक खेती से न केवल फसल उत्पादन में बढ़ोतरी हो रही है, बल्कि बाजार में जैविक उत्पादों की मांग भी तेजी से बढ़ रही है. इससे किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिल रहा है.