Supreme Court : अगर आप भी भारत देश के निवासी हैं तो आप सभी को बता दें कि देश के कोर्ट में जब भी किसी मामले पर फैसला की सुनवाई किया जाता है तो उसे मामले के स्वरूप पहलू गवाह और सबूत के आधार पर बनाई जाती हैं। वहीं इसके अलावा कानूनी प्रावधानों की भी फसलों में आम भूमिका होता है। जहां तक बात गवाह की करें तो अधिकतर लोग इस बात से अनजान रहते हैं कि कोर्ट में बच्चों की गवाही का कितना रोल होता है।
वही इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूरी स्थिति को स्पष्ट कर दिए हैं। ऐसे में लिए जानते हैं कि कोर्ट में किसी मामले में बच्चों की गवाही को कितना सीरियस लिया जाता है।
Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने छोटे बच्चों की गवाही को लेकर क्या निर्णय दिए हैं, जानिए नीचे की लेख में
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने छोटे बच्चों की गवाही को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं। वहीं कोर्ट ने अपने शब्दों में बतलाएं हैं कि बाल गवाह को साक्ष्य माने जाते हैं और उसकी गवाही को पूरी तरह नकारा नहीं किया जा सकते हैं। वहीं उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए कोर्ट ने उम्र कैद की सजा को बरकरार रखे हैं।
वहीं सुप्रीम कोर्ट की दो सिस्टम की बेंच ने यह स्पष्ट कर दिए हैं कि साक्ष्य अधिनियम में गवाह की न्यूनतम उम्र तय नहीं की गई है और यदि बाल विवाह साक्ष्य पाए जाते हैं तो उसकी गवाही स्वीकार होंगे।
Supreme Court : कोर्ट में किस मामले में थी बच्चों की गवाही, जानिए नीचे की लेख में
आपको बता दें कि पति और पत्नी की हत्या के मामले में अदालत ने अपने शब्दों में कहीं की रिकॉर्ड में यह नहीं थे कि पीड़िता की बेटी एक प्रशिक्षित गवाह थे। वही कोर्ट ने अपने शब्दों में बतलाएं की अक्सर ऐसे मामले होते हैं। जहां पत्नी तनावपूर्वक वैवाहिक संबंधों और संदेह के कारण पत्नी की हत्या कर देते है।
वहीं पीठ ने यह भी कहे कि इस तरह के अपराध घर के अंदर होता है। जिससे उन्हें छिपाना आसान हो जाता है। वही इस कारण अभीयोजना पक्ष के लिए पर्याप्त प्रस्तुत करना कठिन हो जाती है। वहीं इस मामले में एक बच्ची गवाह दिए थे।
गवाही से पहले जांच है जरूरी, सुप्रीम कोर्ट
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने शब्दों में कहीं की साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 के तहत किसी बच्चे का बयान लेने से पहले निचली अदालत को एक प्रारंभिक जांच करना बहुत ही जरूरी हो जाता है। वहीं इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बच्चा गवाह देने के महत्वपूर्ण और पूछे गए सवालों को समझने में सक्षम है।
वही यह निर्णय मध्य प्रदेश सरकार द्वारा जून 2010 में उचित न्यायालय के फैसले के खिलाफ किए गए अपील पर दिए गए हैं। वहीं अदालत ने इस प्रक्रिया को जरूरी बतलाएं ताकि बच्चे की गवाही की विश्वसनीयता सुनिश्चित किया जा सके।
क्या था पूरा मामला, जानिए नीचे की लेख में
बता दे की 2003 में एक व्यक्ति जिसे एक महिला की हत्या का आरोप लगाया गया था। वही उसको उच्च न्यायालय ने बरी कर दिए। वहीं पीड़िता की बेटी जो घटना के समय 7 वर्ष की थी। वही गवाही देने में सक्षम थी लेकिन उसकी गवाही कमजोर थी। वही खासकर क्योंकि पुलिस के सामने बयान दर्ज करने में 18 दिन की देरी हुए थे।
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार किया और उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिए। वहीं निचली अदालत के फैसले को सही मानते हुए दोषी को आजीवन कारावास की सजा दिए गए और 4 हफ्ते के भीतर आत्म समर्पण करने का आदेश भी दिए गए हैं।